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बुधवार, 24 नवंबर 2010

ओबामा को क्यों चाहिए गांधी


अमेरिकी राष्ट्रपति का दौरा महज आर्थिक हितों से जुड़ा था या भारत के लिए इसके अन्य निहितार्थ भी थे।  बहस का यह आलम बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान या उसके बाद नहीं, उनके राष्ट्रपति चुनाव लड़ने और जीतने के समय से ही शुरू हो गया था। और इस सब की चर्चा सिर्फ भारत में ज्यादा रही हो ऐसा भी नहीं है। दिलचस्प है कि इस बारे में बताने या जताने की सबसे ज्यादा होड़ भी अमेरिकी मीडिया में ही दिखी। बहरहाल,  ओबामा का गांधी प्रेम जरूर एक ऐसा मुद्दा है, जिसने राष्ट्रपति चुनाव से लेकर विश्व शांति के अग्रदूत के रूप में नोबेल सम्मान से नवाजे गए इस बिरले राजनेता को न सिर्फ चर्चित बनाए रखा है बल्कि जब वह अपने हालिया भारत दौरे पर थे तो भी सबसे ज्यादा चर्चा इसी विषय को लेकर रही। देश के गांधीजनों से जब इस बाबत बात की गई तो उन्होंने ओबामा के गांधी प्रेम को सराहा तो पर वे इसे एक राष्ट्राध्यक्ष के ह्मदय परिवर्तन होने की कसौटी मानने को तैयार नहीं दिखे। दरअसल, जिन दो कारणों से ओबामा गांधी को नहीं भूलते या उन्हें याद रखना जरूरी मानते हैं, वे हैं गांधी की वह क्षमता जो साधारण को असाधरण के रूप में तब्दील करने व होने की प्रेरणा देता है और वह पाठ जो विश्व को शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए निर्णायक तौर पर जागरूक होने की जरूरत बताता है।
वर्ष 2008 के शुरुआत में जब ओबामा अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए यहां-वहां चुनाव प्रचार कर रहे थे  तो उन्होंने एक लेख में लिखा, '...मैंने महात्मा गांधी को हमेशा प्रेरणास्रोत  के रूप में देखा है क्योंकि वह एक ऐसे बदलाव के प्रतीक हैं, जो बताता है कि जब आम लोग साथ मिल जाते हैं तो वे असाधारण काम कर सकते हैं।" अपनी भारत यात्रा की शुरुआत में उन्होंने एक बार फिर गांधी को भारत का ही नहीं पूरी दुनिया का हीरो बताया। दरअसल, 21वीं सदी में पूंजी के जोर पर विकास की जिस धुरी पर पूरी दुनिया घूमने को बाध्य है, उसमें भय और अशांति का संकट सबसे ज्यादा बढ़ा है। भोग और लालच की नई वैश्विक होड़ और मानवीय सहअस्त्वि का साझा बुनियादी रूप से असंभव है। इसलिए मौजूदा दौर में जिन लोगों को भी गांधी की सत्य, अहिंसा और सादगी चमत्कृत करती है, उन्हें गांधी की उस 'ताबीज" को भी नहीं भूलना चाहिए, जो व्यक्ति और समाज को हर दुविधा और चुनौती की स्थिति में 'अंतिम आदमी" की याद दिलाता है। लिहाजा, ओबामा का गांधी प्रेम शांति और प्रेम की अभिलाषी दुनिया की संवेदना को स्पर्श करने की रणनीति भर नहीं है तो दुनिया के सबसे ताकतवर कहे जाने वाले इस राष्ट्राध्यक्ष को अपनी पहलों और संकल्पों में ज्यादा  दृढ़ और बदलावकारी दिखना होगा। 9/11 के जख्म से आहत अमेरिका को अगर 26/11 का हमला भी गंभीर लगता है और आतंक रहित विश्व परिदृश्य की रचना उसकी प्राथमिकता में शुमार है तो उसका संकल्प हथियारों की खरीद-फरोख्त से ज्यादा मानवीय सौहार्द को बढ़ाने वाले अन्य मुद्दों पर होना चाहिए। इस बाबत अमेरिकी रक्षा मंत्री का हालिया बयान कि भारत उसका सबसे बड़ा रक्षा साझीदार है, परिवर्तन के कोई अच्छे संकेत नहीं देता। इस मामले में कुछ गांधीजनों की तरफ से आई यह प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण है कि गांधी की लोकप्रियता और उनकी प्रासंगिकता को ओबामा से जोड़कर देखना मुनासिब नहीं क्योंकि जब तक हिंसा और भय का आतंक देश-दुनिया को तबाह करता रहेगा गांधी की प्रेरणा और  उसकी जरूरत सभी को महसूस होती रहेगी। हां, ओबामा के बहाने ये प्रेरणा अगर पूरी दुनिया में और तेजी से फैलती है तो यह जरूर स्वागतयोग्य है। 

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