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शनिवार, 24 जुलाई 2010

आवारा रंगोलीबाज के हाथों संवरी


थोड़ी खोई थोड़ी सकपकाई आंखें
संकोच से मुठभेड़ में झुकी गर्दन
कुछ चुभा कुछ चुका मन
मई-जून की गरमी सा तपा चेहरा
ताजे उतारे गए गोश्त की तरह
छाती पर रखा प्रेम
स्पर्श स्नान से
बेदाग होने का जतन फिर आजमाएगा
इस कुकुरधर्मी प्यार पर
फिकरा सांड बनारसी का धौल जमाएगा
दोनों बाजुओं से हार चुका प्रेम
दोनों जांघों में फंस जाएगा

तुम भले बनना चाहो चिड़िया
खूब तोलो पर
वो भुट्टे सा भुनेगा तुम्हें दांतों से चबाएगा
पाखी नहीं उसने एक आजाद उड़ान को चखा है
और यह अट्टहास एक बार फिर
'स्त्री उपेक्षिता' को सजिल्द कर जाएगा

किसी आवारा रंगोलीबाज के हाथों संवरी
दोपहर की अंगुली पकड़कर
शाम की गोद तक पसरी
दिनदहाड़े की अठखेलियां
रात की नीयत में बदली
रतजगे सपनों की हकीकत जैसी
तुम्हें शुरू करने वाला नहीं
कोई अनंत कर जाने वाला पाएगा
मध्यांतर का संगीत जैसा इस बार बजा
वैसा आगे भी बजता जाएगा

प्रेम के लिए होली पैंडेंट का सहारा
जय माता दी का डॉल्बी जयकारा
घर से निकलते ही मंदिर का नजारा
किसी महोदय को पाने के
आवेदन पत्र जैसा
थाने में मनमर्जी के खिलाफ अर्जी
मुंदरी में चमकते नक्षत्र जैसा
रोने का नहीं खुश होने का हक तुम्हारा
लड़ने का हौसला बार-बार देगा
जीत हो तुम्हारी अभिनंदन हो तुम्हारा
यकीन है कि अपडेट कर दोगी तुम
फ्रेंड फिलॉस्फर और गाइड का
घिसा मुहावरा
तब कच्ची शराब की खुमारी थी
अब शैंपन उफनाएगा
देसी पगडंडियों में खेला-खोया प्यार
अमेरिका रिटर्न कहलाएगा

23.07.10

8 टिप्‍पणियां:

  1. kaml likhta hain prem bhai. shabd he vhi vison be bejod. allah kra jor-e-kalm aur jyada.

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  2. bhawanao ko unn shabdo mai ukerana...
    shabdo mai bhawanao ko bandhana....
    Kya bat hai....Shubhkamnaye...

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  3. Nice words ferfect thoughts but also seems a intervel between sting & personal pain but all the way a nice one.I love it

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