दूरी हमारी पहचान के गाढ़ेपन को तो हल्का करती है पर उसके दायरे को बढ़ा देती है। नजरिया, मजहब, राजनीति, स्थान और बोली के अंतर देश में जिस अनेकता की लकीरों के रूप में दिखते हैं, देश के बाहर वही अनेकता हमें एकता के सूत्र में बांधती है। दूरी और मनुष्य के रिश्ते का यह मनोवैज्ञानिक सच तो है ही उसके सामाजिक और सार्वजनिक सलूक से जुड़ी बुनियादी बात भी है। जिस अन्ना हजारे को अपने देश में और अपनी सरकार से अपनी बातें कहने-मनवाने के लिए 98 घंटे का अनशन करना पड़ा, उसी को लेकर सरकार को जब देश के बाहर अपनी बातें कहनी होती है तो वह इसे किसी टकराव या मतभेद के बजाय बहुदलीय लोकतंत्र प्रणाली का नया आयाम बताती है...
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