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बुधवार, 12 जनवरी 2011

लड़की, बेडरूम और प्यार


 (1)
प्यार
प्यार का पुनर्पाठ
अभिनय की तरह
कई बार के रिटेक में
फाइनल शॉट का अभ्यास
एक जनतांत्रिक मसला तो है
पर संवैधानिक नहीं
सवाल उगाती समझदारी है यह
उस अधीर लड़की की
जो भूल से प्यार भले न सही
पर प्यार में चूक जरूर कबूलती है
प्यार का मर्म कोमल धर्म
उसे रह-रहकर कचोटता है
अपने ही किए को
कसौटी बनाने के जोखिम से

(2)
पिछले दरवाजे से स्वाधीन हुआ प्रेम
सामने के दरवाजे पर खड़ा
बड़ा सवाल है
वह लड़की आज भी अधीर है
बाल को संवारने जैसा
जिंदगी की संभाल के लिए

(3)
प्यार को रोक नहीं पाना
एहसास की सिहरन जागते ही
तकिया और रजाई हो जाना
महज समय के दोशाले में लिपटी
खरगोशी गरमाहट नहीं
समय के सबसे तेज साफ्टवेयर पर
डाउनलोड किया गया एप्लीकेशन भी है

(4)
...तो क्या एक अधीर लड़का ही
आखिरकार गढ़ता है
एक अधीर लड़की का प्रेम
उसका मन उसका मिजाज
उसका पूर्व उसका आज
बहस हंसकर करें या डूबकर
गर्दन की नाप तो लेनी होगी
उन छोकरों की ही
जिनके माइक्रोसॉफ्टी दिमाग के
खुले विंडो पर
बालिगाना खेल के लिए
तैयार हैं कई गेमप्लान
समय से ऊंची मचान
तीखे तीर शातिर कमान

(5)
अबला को
बला की संभावनाओं से भर देना
आजादी के नाम पर की गई
मालफंक्शनिंग नहीं तो और क्या है

(6)
लैंगिक समता के अलंबरदारों बताओ
एक लड़की का बेडरूम की तरह इस्तेमाल
उसे जिस हाल तक देता है पहुंचा 
वहां कितना बचता ही है दमखम
एक अधीर हुई
अबीर हुई लड़की के पास
कि वह फिर से करे प्यार
अपने किए-कराए पर पुनर्विचार
या कि आंखों को काजल कर देने वाले
आंसुओं पर एतबार

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