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गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

पुराना प्यार


मुझे नहीं पता कि तुम मेरे प्यार हो
मुझे नहीं पता कि तुम मेरे आर्य हो
सींक रही हूं अभी मैं
बीते बरस की दोपहरी में
खड़ी हूं अभी मैं
अतीत की कचहरी में
जान लो बस यही तुम
तुम्हारे लिए मेरा यही
मुख्तसर सा बयान है
मन बहुत परेशान है
मन बहुत अशांत है

वह तो मौन था हुई थी
मैं ही मुखर तब भी 
खोले थे मांग भरे थे सपने सिंदूरी
वह हमारा ही मोहकाल था
वह हमारा ही द्रोहकाल था
तुम्हारे हाथ से फिसलकर
फिर हो जाऊंगी जंगली
एक के बाद एक
प्यार के कई तट पार करने वाली
मैं जंगली- अमंगली
छोड़ दो मुझे
मत छेड़ो मुझे
मन बहुत परेशान है
मन बहुत अशांत है

तुमने जानबूझकर किया
मेरे बलुआए गले को तर
खुद से ही बन गए तुम दाता
मेरे प्रेम
मेरे भाग्यविधाता
तुम्हारे प्यार के कलश को
घेरे जो धान है
श्रीफल को लपेटे जो
पूजनीय विधान है
वह सब मिलकर भी
तुम्हारी अशुभता का कलंक
नहीं हरेंगे
तुम अपनी यज्ञवेदी संभालो
हम तो अतीत संग बहेंगे
अतीत को चीड़कर 
भविष्य निखर आएगा
मैं फिर से करूंगी प्यार
मुझे फिर से कोई पाएगा

हटो मलेच्छ...शापित...
हटो मेरे भाग्यविघ्न...
तुम्हारे प्यार का छल
निर्जल रह जाएगा
मैं फिर से करूंगी प्यार
मुझे फिर से कोई पाएगा
तुम नहीं स्वाभाविक आकाश मेरे
और न मैं धरा तुम्हारी
अब न तुम हमारे
आैर न मैं तुम्हारी

2 टिप्‍पणियां:

  1. "मैं फिर से करूंगी प्यार
    मुझे फिर से कोई पाएगा
    तुम नहीं स्वाभाविक आकाश मेरे
    और न मैं धरा तुम्हारी
    अब न तुम तुम्हारे
    आैर न मैं तुम्हारी"

    बहुत सुन्दर कविता!

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  2. इतनी त्वरित टिप्पणी....शुक्रिया डॉ. आशु

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