LATEST:


बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

मारे जाएंगे


अलंकरण समारोहों में
गुलदस्तों का भार उठाना
कितनी बड़ी कृतज्ञता है
विनम्रता है कितनी बड़ी
अपने समय के प्रति

हमारे समय के सुलेखों
आैर पुस्तकालय के ताखों पर रखे
अग्रलेखों ने
लेख से ज्यादा बदली है लिखावट
उतनी ही जितनी
उनकी बातें सुनकर
महसूस होता है
श्रोताओं की पहली, दूसरी आैर
अंतिम कतार को

ऐतिहासिक होने का उद्यम
श्रीमान होने के करतब का
सबसे खतरनाक पक्ष है
समय की धूल पोंछकर
हाथ गंदा करने का जमाना लद गया
अब तो समय को सबसे क्रूरता से
बांचने वालों की सुनवाई है

कलम ने कुदाल की तौहीनी
भले न की हो
पर खुद को मटमैला होने से
भरसक बचाया है
हम जिन बातों पर रो सकते थे
सिर फोड़ सकते थे आपस में
कैसा तिलस्मी असर है इनका
कि हम बेवजह हंस रहे हैं
रो रहे हैं
जबकि हमें भी मालूम है
कि हम पूर्वजन्म से लेकर
पुनर्जन्म तक जागे ही नहीं
बस सो रहे हैं

मंचासीन जादूगरों के डमरू पर
डम-डम-डिगा-डिगा गाने वाले
जादू का खेल देखकर ताली बजाने वाले
अब मजमे में शामिल तमाशबीन नहीं
एक पागल भीड़ है
जो घर-घर पहुंच चुकी है
अगर न बने हम भीड़
तो भीरु कहलाएंगे
आैर अगर हो गए भीड़ तो
मारे जाएंगे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें