हिंदी की एक पत्रिका ने युवाओं के बीच सेक्स सर्वे कराया। सर्वे में एक सवाल यह पूछा गया कि आप किस अभिनेत्री से मिलना चाहते हैं। जवाब का सबसे ज्यादा फीसद ऐश्वर्य राय के पक्ष में था। पर इस जवाब में कोई सनसनाहट न पाकर सर्वे कराने वाली एजेंसी ने पत्रिका के संपादक और प्रबंधन के साथ बातचीत कर सवाल में थोड़ा ट्विस्ट लाया। नया सवाल था कि आप किस अभिनेत्री का स्पर्श चाहते हैं। उम्मीद के मुताबिक युवाओं के जवाब में भी ट्विस्ट आया। अब जवाब का सबसे ज्यादा फीसद विपाशा बसु के नाम के साथ था। यह वाकिया वर्ष 2003 का है। बता दें कि तब विपाशा का "जिस्म' युवाओं को उस सनसनाते एहसास से भर देता था, जिसमें रुमानियत के साथ वह गरमाहट भी थी, जिसके लिए आज एक ही शब्द चलता है- हॉट। सेक्स सर्वे के नाम पर किया गए खेल का सीधा संबंध भले पत्रिका की रीडरशीप उछालने के लिए किया गया हो, पर इससे तो इतना तो जाहिर होता ही है कि भारतीय युवा मन पिछले कुछ सालों में रोमांस और सेक्स को लेकर किन हदों से आगे निकल रहा है और किन नई हदों को छूने के लिए मचल रहा है।
वाइल्ड सेक्स और वॉलेटाइल सेंसेक्स के दौर ने युवाओं को जिंदादिली का वह पाठ पढ़ाया है, जिसमें संयम की कोई सीमा नहीं और स्वच्छंदता की कोई इंतिहा नहीं। तभी तो युवा मन को टटोलते हालिया सर्वे में 41 फीसद युवाओं ने माना कि वे बीस साल से पहले यौन संसर्ग का अनुभव पा चुके हैं। दिलचस्प तो यह कि अब भी लज्जा और पर्दादारी से एक टैबू की तरह जूझ रही युवतियां इस अनुभव को पा लेने में पुरुषों से आगे हैं। यही नहीं वेश्यागामी होने और समलैंगिक यौन अनुभव को लेकर भी तजुर्बेदार युवाओं की गिनती बढ़ी है। ऐसे युवा अब इक्के-दुक्के नहीं बल्कि हर दस में से एक हैं। 25 फीसद युवा तो बेझिझक अपने को व्यभिचारी ठहराते हैं। हमारे समाज की आपसदारी में इस तरह के व्यभिचार के लिए गुंजाइश कितनी बढ़ी है, अगर यह समझना हो तो जान लीजिए की व्यभिचार के 38 फीसद मामलों में पड़ोसी को शिकार बनाया जाता है। इस तथ्य की भयावहता इस बात से समझ में आ सकती है कि ऐसे कुकृत्य के लिए समाज से अलग वेश्याओं तक पहुंचने वालों की गिनती तेजी से गिर रही है।
पिछले साल नोएडा की एक छात्रा के रहस्यमय ढंग से हत्या होने के बाद बड़े और रसूख वाले शादीशुदा लोगों के बीच वाइफ स्वैपिंग का मामला थोड़े अधखुले ढंग से सामने आया था। जब यही बात सर्वे के दौरान पूछा गया तो 20 फीसद लोगों ने माना कि वे अपने सेक्स पार्टनर की अदला-बदली की कोशिश की है। और इस तरह की पेशकश करने वालों में महिलाओं का फीसद 27 था और यह पुरुषों के मुकाबले मात्र छह फीसद ज्यादा था। जाहिर है सेक्स को लेकर खुलापन जंगल के आग की तरह फैल रहा है और यह तन में तो लगी ही है मन भी झुलसने से नहीं बचा है। इससे पहले दिल्ली के एक पब्लिक स्कूल और इस बार नोएडा के एक मैनेजमेंट इंस्टीट¬ूट की छात्रा का एमएमएस मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच खासी चर्चा में रहा। यह उस किशोर पीढ़ी का सच है, जो संबंधों को सदेह समझने के लिए बेझिझक तैयार ही नहीं बल्कि बेकरार है। अलबत्ता यह जरूर है कि इस बेकरारी का हश्र कई बार हत्या और आत्महत्या की हद तक पहुंच जाता है।
समाजशास्त्री आनंद कुमार नई पीढ़ी को जागरूकता की कछार पर दम तोड़ रही मछलियों की तरफ देखते हैं, जहां से समाज और परंपरा की लहरें टकराती तो हैं पर धारा की तरह बहती नहीं। वैसे कुमार की नजरों में इस सचाई का फीसद ज्यों-ज्यों शहरों से छोटे मझोले कस्बों और गांवों की तरफ बढ़ते हैं, गिरता जाता है। ब्राांड मैनेजमेंट के दिग्गज मयंक गौतम की नजरों में आज के युवाओं में जुनून खासा है पर बदकिस्मती से इस जुनून को धैर्य से परहेज है। लिहाजा सब कुछ पा लेने या फतह करने की जिद का असर प्यार और संबंधों के नाजुक रिस्तों पर भी पड़ रहा है। इस स्वाभाविक असर का ही नतीजा है संबंधों का खुलापन और उस पर पड़ने वाली खरोचें।
सेक्स के प्रति आज की युवा पीढ़ी की खुली मानसिकता और उससे चडमडाती हमारी सामाजिक व्यवस्था. इसे युवाओं का खुलापन कहे या generation gap, या फिर नयी पीढ़ी में पारंपरिक संस्कारों का अभाव, कहीं न कहीं यह सेक्स बूम, जो एक तरह की क्रांति ही है, अपने समाज के गिरते मूल्यों के लिए ज़िम्मेदार है. आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ. बड़ा सुन्दर विश्लेषण है हालात का!
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