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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

एक बर्बर कृत्य


तेजाबी हमले के रूप में जिस तरह की घटना पर चर्चा और विमर्श की दरकार की बात आज हर तरफ हो रही है, वह एक बर्बर कृत्य के रूप में हमारे समय और समाज का तेजी से हिस्सा बनता जा रहा है। लड़कियों के चेहरे और शरीर पर तेजाब फेंककर उसकी पूरी जिंदगी तबाह करने की घटनाएं निश्चित तौर पर आपवादिक नहीं कही जा सकती हैं। पर इसके खिलाफ पहल करने के लिए न तो सरकार कभी सामने आई और न ही समाज ने अपनी तरफ से कुछ किया।
अगर किसी ने पहल की तो उस लड़की लक्ष्मी ने जो खुद ऐसी ही एक घटना की शिकार हुई थी। लक्ष्मी की 2००6 में दायर जनहित याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट का इसी साल 18 जुलाई को एक महत्वपूर्ण फैसला आया था। सर्वोच्च अदालत ने अपने अंतरिम आदेश में तेजाब खरीदने और बेचने को लेकर सख्त नियम-कायदों का प्रावधान किया था। सुप्रीम कोर्ट ने बिना पहचान पत्र देखे तेजाब बेचने को गैरकानूनी बताया था। साथ ही केंद्र और राज्य की सरकारों से यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि कोई नाबालिग इसे किसी भी सूरत में नहीं खरीद सके। इसका मतलब यह कतई नहीं था कि बाजार में तेजाब बिकेगा ही नहीं, बल्कि जो तेजाब बाजार में खुले तौर पर बिकेगा वह त्वचा पर बेअसर होगा।
इस मामले में जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस फकीर मोहम्मद की बेंच ने राज्य सरकारों से दो टूक लहजे में कहा था कि वे तेजाबी हमलों को लेकर गंभीरता दिखाएं और इसे गैरजमानती अपराध घोषित करें। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बाबत राज्य सरकारों को तीन महीने के भीतर नीतिगत स्पष्टता लाने और सारी प्रक्रियाएं तय करने को कहा था। सरकारों को ऐसे अपराध के मामले में पुनर्वास को लेकर भी नीति बनाने को कहा गया था।
इस पूरी सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने तेजाबी हमले की शिकार महिलाओं की जिंदगी को लेकर जहां एक गंभीर और संवेदनशील नजरिया बनाए रखा, वहीं सरकारों को इस मामले से कड़ाई से निपटने के लिए कहा। न्यायालय ने यही दरकार सरकारों के आगे भी रखी थी। यही कारण है कि अब जो सूरत बन रही है उसमें यह मुमकिन होता दिख रहा है कि केंद्र सरकार तेजाब को लेकर एक सख्त कानून का ड्राफ्ट देश के सामने लेकर आए। इस बारे में केंद्र सरकार अटार्नी जनरल से राय पहले ही मांग चुकी है। वैसे इस मामले में एक पेंच भी है। तेजाब की खरीद-बिक्री के आधार और तरीके तय करने का मामला राज्य सरकारों के अधीन है। इसलिए दो ही स्थितियां केंद्र सरकार के सामने है कि वह इस मामले में एक मॉडल कानून देश के सामने रखे और दूसरा यह कि वह राज्य सरकारों को ऐसी कानूनी पहल के लिए सख्त दिशानिर्देश दे।
सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में अगली सुनवाई चार महीने बाद होनी थी। सर्वोच्च न्यायालय को उम्मीद थी कि इस दौरान सरकारों की तरफ से इस गंभीर मामले में उसके दिशानिर्देश के मुताबिक तेजी से कदम उठाए जाएंगे। पर ऐसा हुआ नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट ने 31 मार्च 2०14 तक की नई समयावधि इस काम के लिए तय की है। पर इस लापरवाही का क्या जो इतने संवेदनशील मामले में अब तक केंद्र और राज्य की सरकारों की तरफ से दिखाई गई है। नई मिली मोहलत में ये लापरवाही दूर हो जाएगी, ऐसी उम्मीद भले कर ली जाए पर इस पर यकीन तो कतई नहीं होता।
इसी साल संसद में यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून बनाते समय भी सरकार ने तेजाबी हमलों को एक गंभीर अपराध मानते हुए इस अपराध में कसूरवारों के खिलाफ सख्त सजा की बात कही थी। पर अब यह पूरा संदर्भ सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देश आ जाने के बाद बदल गया है। केंद्र सरकार को पूरी स्थिति पर अब नए सिरे से गौर करना होगा।
वैसे यह पूरा मामला सिर्फ कानून से जुड़ा नहीं है। अगर इस तरह के कृत्य एक तेजी से बढ़ रही कुप्रवृत्ति की शक्ल अख्तियार कर रहे हैं तो इसके बारे में समाज को भी एक जागरूक पहल करनी होगी। सेक्स, सक्सेस और सेंसेक्स के दौर में यह समझना मुश्किल नहीं है कि तेजाबी हमले की शिकार अगर लड़कियों को बनाया जा रहा है तो इसके पीछे वजहें क्या हैं। बहुत गंभीर विमर्श की तरफ न भी जाएं तो इतनी बात तो जरूर हम समझ सकते हैं कि संबंध जब दैहिकता की शर्तों पर ही तय होंगे तो प्रेम संवेदनाओं के लिए स्पेस कहां रह जाएगा। टीवी-सिनेमा, विज्ञापन और लोकप्रियता के दायरे में आना वाला हर कंटेंट अगर हमें बस यही समझाए-बताए कि प्यार हासिल करके भोगने की चीज है और प्रेम वस्तुत: कलात्मक अभिव्यक्ति है तो फिर हसरत अगर हासिल होने से रह जाए तो कार्रवाई तो हिंसक और बर्बर ही होगी। हमारे समय का यह सच वाकई भयावह है और इस भयावहता को लंबे समय तक मानवता शायद ही सहन कर सके। लक्ष्मी ने तेेजाबी हमलों के खिलाफ जो संघर्ष छेड़ा है, उसका निर्णायक मुकाम तक पहुंचना मौजूदा समय की मांग है।

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