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रविवार, 20 फ़रवरी 2011

मथभुकनी


 (1)
मथभुकनी
कोई लांछन नहीं
बजाप्ता अब नाम है उसका
लाड़ के साथ पुकारा 
शख्सियत के साथ
काढ़ा जानेवाला नाम

(2)
बहनों में दो उससे पहले
एक उसके बाद
और आखिर में
भाइयों की युगलबंदी
सबसे पहले मां ने कहा
अपनी सबसे अलग
इस बेटी को
मथभुकनी
फिर बहनों ने
बाद में चलकर
रक्षा बंधन के लिए
कलाई आगे करने वाले
उम्र में आधे भाइयों ने
किया विकास
इस पुकारू परंपरा का

(3)
दूध पीने से ज्यादा
दूध काटने की आदत
प्यार पाने से ज्यादा
प्यार को ना बांटने की
जिद्दी फितरत
अलगाती चली गई उसे
अपने ही सहोदरों से
पहले तो घरेलू परिवेश ने ही
फूंका शंख
फिर कुछ स्वायत्त किताबों ने
बांधे पंख
और आजाद होता चला गया
एक ख्यालात
मजबूत होती चली गई
एक कस्बाई लड़की का
तांबई हालात

(4)
सांस की गुदगुदी
मन की फुलझड़ी
किसी नाजुक पंखुरी पर लिखे
स्त्रीवादी सुलेख की तरह
मजबूत इरादों में ढलते गए
मथभुकनी के इर्द-गिर्द
प्यार को
अपनी जिंदगी के प्रति
एतराज जताने का
जरिया बना लेने के
खतरनाक जज्बे ने
बना दिया बालिग उसे
संविधान की सहमति का
मोहताज हुए बगैर
फूल और पराग पर
मचलने के
ककहरे अनुभव से पहले
वह खुद ही हो गई आस्वाद

(5)
मुझे क्यों
कहा गया मथभुकनी
क्यों नहीं बरसे
सिर्फ मेरे लिए मेघ
क्यों भींगाई जाती रही मैं
साझे प्यार की बरसात में
क्यों नहीं गूंजा
सिर्फ मेरा नाम
पुश्तैनी जज्बात में
सवालों का तकिया
नींद से ज्यादा सपने दे गई
मैं भुकाती रहूं माथा
और कोई देता रहे साथ
प्यार का
प्यार की
कभी न खत्म होने वाली
तालाश का

(6)
मथभुकनी को देखना
तीन दशकों में एक साथ
तौलना
उसके अनुभवों की मात्रा को
कोई मामूली लेखाजोखा नहीं
कुछ कहना ही हो अंदाजन 
तो कह सकते हैं महज इतना
कि कई बार साना गया आटा
गूंथी गई बार-बार मिट्टी
है इंतजार में अब भी
गर्म तबे  के
घूमती चाक के  

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