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मंगलवार, 6 जुलाई 2010

सफरनामा


वसुंधरा से नोएडा
रोज का आना-जाना
एक तरफ घर
एक तरफ नौकरी का ठिकाना
राजधानी दिल्ली की धूप
आसपास के इलाकों में भी छिटकी है
कइयों का रोजी-रोजगार
कइयों के लिए तफरीह
कइयों के लिए शहरी आबोहवा में बढ़ रही मस्ती है

चाहे जिस भी रास्ते से आओ-जाओ
बारह से चौदह किलोमीटर का
पड़ता है एक फेरा
इस एक फेरे को कई बार पूरा करने का तजुर्बा
हाथ में हाथ लेकर
सावनी फुहारों से भीगा-भीगा
मौसमी नेमतों से हरा-भरा
जिंदगी के थकने-रुकने के खिलाफ
जादुई एहसास से भरा होना
कई मिलती-जुलती राहों
कुछ जरूरी चौराहों का जिंदगी में शामिल होना


रोज का सफर
रोज का रास्ता
शहर के तमाम हिस्सों को
हाथ बढ़ाकर चूम लेते थे
कहीं भी जाना हो
मॉल, मंदिर या कि तफरीह का कोई और ठिकाना हो
सब रास्ते
सब ठिकाने थे जाने-पहचाने
पेड़ की नरम घुमावदार डालियों की तरह
यात्रा का बिंब किसी सुंदरी की तरह
चौराहों पर रास्तों की आवृति-गोलाई
कानों में झूमती बालियों की तरह

जिंदगी के सर्वथा सघन अनुभव के लिए
पहले काफी ऊबड़-खाबड़
उजड़े टूटे-फूटे उजाट थे रास्ते
अब चलकर या दौड़कर नहीं फिसलकर
तय होती हैं दूरियां
न किसी को संभालने की जरूरत
न किसी की मदद
न बढ़कर हाथ थामने की मजबूरियां
रेंगने लगे हैं रास्ते सारे सांप से
कहीं गड्ढ़े न मिट्टी के ढेर
न पत्थरीली किनारी
न कहीं माटी-पानी का गडमड खेल

फर्राटे से भागता सफर
आसान है बहुत
इतनी तेजी से निकलती-भागती हैं गाड़ियां
कि नजदिकियां पीछे छूट जाती हैं
राही-हमराही-हमजोली होने के
पुरसुकून एहसास कहीं रुठ गए जैसे
सब निकल जाते हैं तेजी से
रपटीले सफर का सफरनामा
सब दूर-दूर
नहीं कोई आसपास

जिन रास्तों पर
मिलते थे हाथ
चलते थे दोस्त
जलते हैं दर्जनों लैंपपोस्ट
प्रेम और मिलाप की हर गुंजाइश के खिलाफ
राहजनी की घटनाओं के सबसे बड़े चश्मदीद

पुराने रास्ते के बदल गए हैं पुराने नातेदार
कई ने बदल लिए रास्ते
कई ने बदले रास्तेदार
पुराने कई राहगीर अब भी कर रहे हैं सफर
नए हो चुके इन पुराने रास्तों पर
सोचते हुए बार-बार
भरते हुए एहसास
कि रास्तों का तेज होना
सफर का चुक जाना नहीं है
आजमाना पड़े तो आजमा लेंगे
पुरानी राहों की नई सर्पीली चालों को
30.05.10

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