
थोड़ी खोई थोड़ी सकपकाई आंखें
संकोच से मुठभेड़ में झुकी गर्दन
कुछ चुभा कुछ चुका मन
मई-जून की गरमी सा तपा चेहरा
ताजे उतारे गए गोश्त की तरह
छाती पर रखा प्रेम
स्पर्श स्नान से
बेदाग होने का जतन फिर आजमाएगा
इस कुकुरधर्मी प्यार पर
फिकरा सांड बनारसी का धौल जमाएगा
दोनों बाजुओं से हार चुका प्रेम
दोनों जांघों में फंस जाएगा
तुम भले बनना चाहो चिड़िया
खूब तोलो पर
वो भुट्टे सा भुनेगा तुम्हें दांतों से चबाएगा
पाखी नहीं उसने एक आजाद उड़ान को चखा है
और यह अट्टहास एक बार फिर
'स्त्री उपेक्षिता' को सजिल्द कर जाएगा
किसी आवारा रंगोलीबाज के हाथों संवरी
दोपहर की अंगुली पकड़कर
शाम की गोद तक पसरी
दिनदहाड़े की अठखेलियां
रात की नीयत में बदली
रतजगे सपनों की हकीकत जैसी
तुम्हें शुरू करने वाला नहीं
कोई अनंत कर जाने वाला पाएगा
मध्यांतर का संगीत जैसा इस बार बजा
वैसा आगे भी बजता जाएगा
प्रेम के लिए होली पैंडेंट का सहारा
जय माता दी का डॉल्बी जयकारा
घर से निकलते ही मंदिर का नजारा
किसी महोदय को पाने के
आवेदन पत्र जैसा
थाने में मनमर्जी के खिलाफ अर्जी
मुंदरी में चमकते नक्षत्र जैसा
रोने का नहीं खुश होने का हक तुम्हारा
लड़ने का हौसला बार-बार देगा
जीत हो तुम्हारी अभिनंदन हो तुम्हारा
यकीन है कि अपडेट कर दोगी तुम
फ्रेंड फिलॉस्फर और गाइड का
घिसा मुहावरा
तब कच्ची शराब की खुमारी थी
अब शैंपन उफनाएगा
देसी पगडंडियों में खेला-खोया प्यार
अमेरिका रिटर्न कहलाएगा
23.07.10