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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

केजरीनोमिक्स

कोई भी नया आंदोलन अपनी प्रकृति में बहुत मुक्त होता है। पर यह खुलापन तभी तक रहता है जब तक आंदोलन से जुड़े विचार और संगठन को आकार नहीं मिल जाए। आम आदमी पार्टी (आप) के अभ्युदय और उसके पीछे की पृष्ठभूमि को समझें तो यह बात और साफ होगी। भ्रष्टाचार को लेकर एक सशक्त कानून की मांग के साथ शुरू हुआ आंदोलन देखते-देखते संगठन और विचार के अनुशासन में ढलता गया। इस स्वाभाविकता में किसी तरह की विसंगति देखने की जरूरत नहीं है पर इतनी टिप्पणी तो करनी ही पड़ेगी कि विचारधारा और संगठन की औपचारिकता में ढलने से पहले इस आंदोलन के नेताओं को कोई भी बात कहने में बहुत सोचना नहीं पड़ता था। वे भ्रष्टाचार की बात छेड़कर देश के साढ़े छह दशक की गणतंत्रीय यात्रा और मौजूदा राजनीति व पार्टी सिस्टम पर अंगुली उठा देते थे। पर अब जबकि यह पार्टी चुनावी राजनीति का बकायदा हिस्सा है तो उसे भी अन्य सियासी जमातों की तरह ही देखा जा रहा है और पूछा जा रहा है कि वह देश के विकास के बारे में क्या सोचती है, उसकी अर्थनीति क्या है, वह मुक्त बाजार व्यवस्था की हिमायती है या नहीं आदि।
हमलावर रहे विरोधी दलआप पर उनके विरोधी दलों की तरफ से बार-बार यह हमला किया जाता रहा कि यह एक कन्फ्यूज्ड पार्टी है, इसकी कोई स्पष्ट विचारधारा नहीं है, खासतौर पर आर्थिक मोर्चे पर देश को कैसे तरक्की की राह पर ले जाएं, इस बारे में पार्टी के पास पहले से तैयार कोई ब्लूप्रिंट नहीं है। पर आज स्थिति बदल गई है। एक 'कन्फ्यूज्ड’ और 'अराजक’ ठहराई जाने वाली पार्टी ने धीरे-धीरे देश और समाज से जुड़े तमाम सवालों और सरोकारों पर अपना रुख साफ करना शुरू कर दिया है। अलबत्ता भ्रष्टाचार का पूर्ण निषेध जरूर आज भी आप का कोर एजेंडा है पर पार्टी अब अर्थव्यवस्था, विकास और सरकारी कामकाज को लेकर प्राथमिकताओं पर खुलकर अपनी राय जाहिर कर रही है। यह देश के लिए भी काफी सुखद है। क्योंकि इससे पहले इस पार्टी के गठन और चुनावी राजनीति पर इसके असर को लेकर ही कयासबाजी ज्यादा होती थी, इसके वैचारिक स्टैंड को लेकर बहुत बात नहीं हो पाती थी।
अर्थ से परहेज मुश्किलयहां एक बात और समझने की है मौजूदा दौर में अमेरिका में बराक ओबामा हों या भारत में नरेंद्र मोदी अथवा अरविंद केजरीवाल, उनके नेतृत्व का आकलन इसी बात पर ज्यादा होगा कि उनका इकोनमिक विजन क्या है और वे इसे सरजमीं पर उतारने के लिए क्या कुछ करते हैं। इस दरकार को खारिज कर कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। यह बात आज देश में सबसे ज्यादा किसी को समझ में आ रही है तो वह हैं अरविंद केजरीवाल।
दिल्ली में जब उन्होंने सरकार बनाई तो उन्होंने मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी के शीला सरकार के फैसले को पलट दिया था। इसके बाद दिल्ली में बिजली के वितरण के काम में लगी निजी कंपनियों पर भी उन्होंने खुलेआम भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। बाद में कंपनियों के लेखा की जांच का जिम्मा भी उन्होंने कैग को दे दिया। सरकार गिरने से पहले केजरीवाल ने गैस की कीमत में प्रस्तावित बढ़ोत्तरी को लेकर उन्होंने एक साथ केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली और रिलांयस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
आशंकित थे उद्यमीऐसे में देश भर में खासतौर पर उद्यमियों के बीच यह आशंका तेजी से फैली की कि क्या आप सचमुच इतनी अराजक है कि वह अर्थ और विकास के इंजन को भी पटरी से उतार दे। आप ने भले ये सब कदम ये सोचकर उठाए हों कि इससे उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकप्रियतावादी राजनीति करने में मदद मिलेगी, पर बाद में पार्टी को यह समझने में देर नहीं लगी कि उसे इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है। फिर क्या था अरविंद केजरीवाल देश के उन शीर्षस्थ उद्योगपतियों के बीच पहुंच गए, जिनके मंच से अपनी बात कहना नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी से लेकर देश के किसी भी नेता के लिए सर्वाधिक गौरव और संतोष का विषय होता है।
सीआईआई के मंच पर 17 फरवरी को वित्तमंत्री पी. चिदंबरम संसद में अंतरिम बजट पेश कर रहे थे और इसी दिन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के मंच पर अरविंद केजरीवाल देश के चोटी के उद्यमियों को यह समझा रहे थे कि न तो वे और न उनकी पार्टी उद्योग जगत के खिलाफ है। इसे उन्होंने जानबूझकर किया जाने वाला दुष्प्रचार करार दिया। उन्होंने जो बातें वहां साफ कीं, उनमें सबसे अहम था कि वे निजी क्षेत्र का देश के विकास में अहम रोल मानते हैं।
यही नहीं उन्होंने यहां तक कहा कि यह क्षेत्र अपनी क्षमता और ऊर्जा के मुताबिक आज देश में इसलिए परफॉर्म नहीं कर पा रहा क्योंकि सरकार की व्यवस्था भ्रष्ट है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात कहने वाले केजरीवाल ने साफ किया कि उद्यमियों की बिरादरी में महज कुछेक लोग ही हैं जो भ्रष्ट तरीके से काम करते हैं। यही नहीं उन्होंने देशभर के उद्यमियों को आप के साथ जुड़ने का खुला न्योता भी दिया। केजरीवाल की इन बातों से इतना तो साफ है कि खुद को अराजक तक कहने वाले नेता को भी इतना पता है कि उसके अनर्थकारी सोच से परिवर्तन की उसकी मुहिम एक सीमित दूरी से आगे नहीं बढ़ सकती।
गंवाया मौका वैसे ये सब तो रहीं कहने-सुनने भर की बातें। ये ठीक है कि अब एक मौका है कि लोग आप के बारे में बात करते हुए उसके आर्थिक चिंतन की भी बात करेंगे। ऐसा करते हुए तटस्थ मन:स्थिति के लोग जहां आलोचकीय विवेक दिखलाएंगे, वहीं दलीय राजनीति के दिग्गज अब अर्थ के मोर्चे पर भी आप को पटखनी देना चाहेंगे। दिलचस्प है कि आप की सोच और विचारधारा को लेकर अब तक एक ही एसिड टेस्ट हुआ है और वह है दिल्ली में उसकी 49 दिन की सरकार। लिहाजा, निजी कंपनियों को लेकर भरोसा दिखाने और ईमानदार राजनीति की चाहे जितनी बातें केजरीवाल कर लें और उसे अपनी घोषणा में दर्ज दिखा दें, उन पर अमल वे कैसे करते हैं अभी यह देखना बाकी है।
इसलिए गिराई सरकारदिल्ली में कुछ और दिन तक सरकार चलाकर वे अपना परफामेर्ंस रिकार्ड देश के आगे रख सकते थे पर उन्होंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया। क्योंकि इतनी सी बात तो अरविंद केजरीवाल भी जानते हैं आदर्श का उद्घोष भले गगनभेदी हो पर उसका आचरण एक मुश्किल चुनौती है। आप इस चुनौती पर खरा उतरने में कितनी अराजक होती है या कितना सफल-
असफल यह पूरे देश के साथ देश का उद्योग जगत भी देखना चाहेगा।
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आप ने समझाया अपना अर्थव्यापार और डकैती
हम पूंजीवाद के खिलाफ नहीं बल्कि साठगांठ वालÞ पूंजीवाद के खिलाफ हैं। हमÞं उस वक्त निराशा हाÞती है जब 1.5 लाख कराÞड़ के स्पÞक्टàम एक हफ्तÞ के भीतर 6,००० कराÞड़ मÞं बÞच दिए जातÞ हैं। इसÞ व्यापार नहीं बल्कि डकैती कहतÞ हैं।
सरकार का कामहमारे दÞश मÞं कुछ ऐसÞ उद्याÞगपति हैं जाÞ असल मÞं उद्याÞगपति या व्यापारी नहीं हैं बल्कि वÞ दÞश काÞ लूट रहÞ हैं । हम उनके खिलाफ हैं, न कि आप सबके खिलाफ। यदि व्यापार पर ताला लगा दिया जाएगा ताÞ राÞजगार कौन पैदा करेगा। व्यापार करना सरकार का काम नहीं है, उसÞ ताÞ प्रशासन पर पूरा ध्यान दÞना चाहिए।
न्याय के नाम पर अन्याय
मुकदमÞबाजी मÞं कमी लानÞ की जरूरत है और खासतौर पर ऐसी मुकदमÞबाजी मÞं कमी की जरूरत है जिसमÞं मुकदमा सरकार की तरफ सÞ दायर किया जाता है। हमारी न्यायिक व्यवस्था काफी जटिल है। इसÞ जानबूझकर लुंज-पुंज बनाया गया है। यह समझना काÞई मुश्किल काम नहीं है कि यदि आप ज्यादा जजाÞं की नियुक्ति करेंगÞ, ज्यादा अदालतÞं खाÞलÞंगÞ ताÞ पिछलÞ 2० साल सÞ लंबित मुकदमÞ छह महीनÞ मÞं निपटाए जा सकतÞ हैं। मैं समझता हूं कि इससÞ स्थिति मÞं काफी हद तक सुधार आएगा।
मनमोहन पर तंज
दुनिया के बÞहतरीन आर्थिक विशÞषज्ञ हमारे प्रधानमंत्री मनमाÞहन सिंह हैं। यूपीए के पिछलÞ 1० साल के शासनकाल मÞं आपनÞ सर्वश्रेष्ठ आर्थिक नीतियां दÞखीं पर सबसÞ बड़ी कमी ईमानदार राजनीति की रही। ईमानदार राजनीति न हाÞनÞ की वजह सÞ उन आर्थिक नीतियाÞं काÞ लागू नहीं किया जा सका।
मंत्रियों पर वार
मनमोहन सिंह की कैबिनÞट मÞं ऐसÞ कई मंत्री हैंं जिन्हाÞंनÞ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी सÞ अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है, ताÞ ऐसÞ मÞं अच्छी आर्थिक नीतियाÞं की कमी नहीं थी। पर हमारे दÞश मÞं उद्याÞगपति और व्यापारी दुखी हैं। वÞ दुखी क्याÞं हैं?
ईमानदार राजनीति की कमी रही है। न ताÞ भाजपा और न कांग्रेस नÞ ईमानदार राजनीति की।
अच्छा प्रशासन दे सरकार
पहलÞ दजर्Þ के नागरिकाÞं काÞ तीसरे दजर्Þ का प्रशासन मिल रहा है। आज सबसÞ अहम मुद्दा प्रशासन है। ईमानदार एवं दक्ष प्रशासन वक्त की मांग है। सरकार का काम व्यापार करना नहीं है, उसÞ 'गवर्नेंस’ करना चाहिए।
विकास का मतलब
दÞश की सभी व्यापारिक गतिविधियां निजी हाथाÞं मÞं हाÞनी चाहिए। कई पार्टियां और सरकारें कहती हैं कि वÞ विकास का काम कर रही हैं पर विकास का काम सरकारें नहीं, व्यापार के जरिए लाÞग करतÞ हैं।
सरकार की भूमिका
सरकार की भूमिका की परिभाषा तय करनÞ का वक्त आ गया है। किसी भी सरकार के लिए तीन काम करना काफी जरूरी हाÞता है। पहला, सरकार का काम नागरिकाÞं काÞ सुरक्षा प्रदान करना है । दूसरा, नागरिकाÞं काÞ न्याय प्रदान करना और तीसरा भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन दÞना है। लÞकिन दुर्भाग्यवश काÞई भी पार्टी यÞ बातÞं नहीं कर रही।
दलों के दावों पर सवाल
तमाम पार्टियां ऐसा दावा करती हैं कि वे विकास देंगी। मैं जानना चाहता हूं कि वे ऐसा कैसÞ करंÞगी जबकि नागरिक असुरक्षित महसूस कर रहÞ हैं। ऐसÞ मÞं क्या काÞई विकास हाÞ सकता है? क्या ऐसÞ माहौल मÞं व्यापार किया जा सकता है?
इंस्पेक्टर और लाइसेंस राज
आयकर विभाग का एक इंस्पÞक्टर भी बडÞè-बड़े उद्याÞगपतियाÞं काÞ मुश्किल मÞं डाल सकता है। आप इंस्पÞक्टर और लाइसÞंस राज के सख्त खिलाफ हैं। हम पूरी व्यवस्था पर फिर सÞ विचार करना चाहतÞ हैं।
निजी क्षेत्र से उम्मीद
सरकार के पास नौकरियां नहीं हैं। देश में नई नौकरियां सृजित करना आसान नहीं है, इसलिए हमें अपने युवाओं को कारोबार से जोड़ना होगा। कॉलेजों में ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे छात्रों को अपने आइडिया पर काम करने का मौका मिल सके । आने वाले दिनों में निजी क्षेत्र ही देश के युवाओं को नौकरियां देने की स्थिति में होगा।
बेईमानी की वजह
देश के 99 प्रतिशत लोग ईमानदारी से काम-धंधा करना चाहते हैं लेकिन ऐसा माहौल नहीं है इसी वजह से लोगों को बेईमानी करनी पड़ती है। मौजूदा नीतियों और प्रक्रियाओं को सरल बनाना होगा। खुद पहल करके ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे कारोबार बढ़े।
निजीकरण से नहीं रुकेगा भ्रष्टाचार
निजीकरण से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा। अगर सरकार भ्रष्ट है तो निजी क्षेत्र भी काम नहीं करेगा। भ्रष्टाचार लालच से आता है और लालच मोटी तनख्वाह से भी कम नहीं होती। भ्रष्टाचार की शुरुआत चुनाव के लिए पैसे लेने से होती है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए डर जरूरी है। मोटी तनख्वाह के बाद भी हमारे देश में कई ऐसे मंत्री हैं, जो भ्रष्ट हैं। किसी भी मंत्री की सीटीसी एक-दो करोड़ से कम नहीं होगी लेकिन एक मंत्री एक ठेके में 5००-5०० करोड़ रुपये की रिश्वत लेता है। कांग्रेस और बीजेपी का पैसा बेनामी का है और इसी वजह से इन पार्टियों के लोग अपने पैसे का हिसाब देने से डरते हैं।
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करके भी दिखाएं
सीआईआई की बैठक के बाद जब देश के प्रमुख उद्योगपति आदी गोदरेज से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इतना भर कहा कि अच्छा है कि आप ने अपनी बातें हम लोगों के बीचकर आकर रखीं। पर वे इन तमाम बातों को क्रियान्वित कैसे करते हैं या कितना कर पाते हैं, अभी यह देखना बाकी है। दिलचस्प है कि आदी की प्रतिक्रिया में न तो केजरीवाल के लिए कोई सराहना के शब्द हैं और न ही नाहक आलोचना के। हां, इतना जरूर है कि आप को बात और जज्बात से आगे अब कार्यक्रम और क्रियान्वयन पर जोर देना होगा।
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लगाया जा सकता है दांव
हां, मैं अरविद केजरीवाल का फैन हूं। मैं उनके विचारों से काफी प्रभावित भी हूं। मुझे सच में नहीं पता कि चुनावी हवा किस ओर बह रही है लेकिन मुझे केजरीवाल के नेतृत्व क्षमता पर पूरा भरोसा है। देश भ्रष्टाचार के कारण परेशान है। आपको आरटीओ में अपनी गाड़ी के लिए नंबर रजिस्टर्ड कराने तक के लिए घूस देनी पड़ती है। अंत में नेता पर ही आकर बात रुकती है। मुझे लगता है कि अरविद केजरीवाल ऐसे नेता हैं, जिस पर दांव लगाया जा सकता है।
-राजीव बजाज, बजाज ऑटो के मैनेजिग डायरेक्टर
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भ्रष्टाचार की योजनाएं
 हमें स्वराज चाहिए। हर वर्ष विकास के नाम पर दिल्ली में बैठकर नेता और अफसर बेतुकी योजनाएं बनाते हैं। लाखों, करोड़ों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं। यह पैसा जनता तक पहुंचने के बजाय भ्रष्टाचारियों की जेबों में चला जाता है। हमें ऐसा विकास नहीं चाहिए। स्वराज होगा तो जनता विकास खुद कर लेगी। स्वराज मतलब जनता का राज। अपने गांव, अपने शहर, अपने मोहल्ले के बारे में सीधे जनता निर्णय ले। संसद और विधानसभाओं में पारित होने वाले कानून भी जनता की मर्जी से
बनाए जाएं।
(अपनी पुस्तक 'स्वराज’ में अरविंद केजरीवाल)

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