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बुधवार, 7 दिसंबर 2011

जासूस है फेसबुक !


ऐसे पत्रकारों और  बौद्धिकों की कमी नहीं, जो अरब मुल्कों में राजशाही के खिलाफ भड़के जनसंघर्षों का बड़ा श्रेय सोशल नेटवर्किंग साइटों को दे रहे हैं। यही नहीं असांजे के विकीलीक्स खुलासे से लेकर स्लट वॉक तक कई आधुनिक तर्जो-तेवर वाली विरोधी मुहिमों की असली ताकत साइबर दुनिया ही रही है। दरअसल, मीडिया के चौबीस घंटों की निगहबानी के दौर में भी अल्टरनेट या न्यू मीडिया के तौर पर एक नया स्पेस तैयार हुआ, जहां स्वच्छंदता की हद तक पहुंची अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निर्भीकता तो है पर एक अभाव भी है। और यह अभाव है गंभीरता और जवाबदेही का। सवाल यह भी है कि जिस साइबर क्रांति को मनुष्य की चेतना और रचनात्मक मौलिकता का विरोधी बताया गया, वह रातोंरात मानवाधिकार का सबसे बड़ा पैरोकार कैसे बन गया, लोकतांत्रिक संघर्ष का एक जरूरी औजार  कैसे हो गया?  
बहरहाल, पिछले दो दशकों में न सिर्फ इंटरनेट यूजर्स की एक पूरी पीढ़ी समय और  समाज का हिस्सा बनी है बल्कि इनकी समझ और  भूमिका ने अपना असर भी दिखाया है। दोस्ती से लेकर परिणय तक का नया सामाजिक व्याकरण आज माउस के बटन से ही तय हो रहे हैं। कहीं 'गोपन' का 'ओपन' है तो कहीं दिली सुकून की तलाश। पर इस सचाई का एक दूसरा और स्याह पक्ष भी है। ज्यादा से ज्यादा कंज्यूमर आैर यूजर फ्रेंडली होने की बाजार की ललक अगर लोगों को आकर्षक और सुखद लगती है तो उन्हें शायद इससे जुड़े जोखिमों का अंदाजा नहीं है।
फेसबुक जो कि आज की तारीख में सबसे बड़ा और जिम्मेदार सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट मानी जाती है, उसके बारे में एक नया खुलासा सामने आया है कि वह अपने यूजर्स पर नजर साइट पर लॉग इन होने के दौरान ही नहीं बल्कि लॉग आफ होने के बाद भी रखती है। यही नहीं अगर आप फेसबुक परिवार में शामिल नहीं हैं लेकिन उसके वेबपेज को कभी विजिट कर चुके हैं तो भी आपकी गतिविधियों की फेसबुक जासूसी कर सकता है। वैसे फेसबुक से जुड़ा यह खुलासा साइबर दुनिया में नया नहीं है। इससे पहले भी याहू, गुगल, एडोब और माइक्रोसॉफ्ट जैसी आईटी कंपनियों द्वारा विवादस्पद ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल की बात सामने आ चुकी है।
यह एक खतरनाक स्थिति है। ज्यादातर उपभोक्ता जो ईमेल या कुछ नए-पुराने संपर्कों के बीच बने रहने के लिए ऐसी वेबसाइटों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें पता भी नहीं होता कि उनकी निजता की सुरक्षा यहां कैसे तार-तार होती है। कहते हैं कि बाजार के दौर में कुछ भी मुफ्त नहीं है। इसलिए अपनी एक या कई आईडी से साइबर दुनिया में अपना पता-ठिकाना मुफ्त हासिल करने वालों को इस बाबत सतर्क रहना चाहिए कि वह अनजाने ही अपनी निजता की ताला-चाबी कुछ शातिर हाथों में सौंप रहे हैं।
बाजार में उत्पादों की बिक्री के ट्रेंड से लेकर नए ऑफरों को फॉम्र्यूलेट करने में कंपनियों को उपभोक्ताओं के व्यापक डाटाबेस से काफी मदद मिलती है। यह जरूरत बैंकों से लेकर पहनने-खाने की चीचें तैयार करने वाली कंपनियों तक को तो पड़ती ही है, इसका इस्तेमाल इसके अलावा अन्यत्र भी संभव है। यह खतरनाक तथ्य कई बड़ी आईटी कंपनियों की विकासगाथा का दागदार सच है। अब समय आ गया है कि हम साइबर क्रांति को नए आलोचनात्मक नजरिए से देखें-समझें। भारत जैसे देश में तो अब तक ढंग का साइबर कानून भी नहीं है, सुरक्षा की बात तो दूर है। ऐसे में लोगों को ही अपनी आदतों को बेलगाम होने से रोकना होगा। नहीं तो सामान्य ईमेल फ्रॉड से आगे हमें कभी बड़े खामियाजे भी भुगतने भी पड़ सकते हैं। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक व्यक्ति लोगो को लोगो की जानकारी देता है, सिर्फ इसलिए की लोगो को उस चीज की जानकारी हो तो वो गुनाहगार है = विकीलीक्स

    एक व्यक्ति लोगो को अपनी जानकारी लोगो तक पहुचाने में मदत करता है, पैसो के लिए तो वह युवा वो का आदर्श है, = फेसबुक

    From Great talent

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