LATEST:


सोमवार, 12 सितंबर 2011

रोटी का तर्क और गर्भपात


समय से जुड़े संदर्भ कभी खारिज नहीं होते। आप भले इन्हें भूलना चाहें या बुहारकर हाशिए पर डाल दें पर ये फिर-फिर लौट आते हैं हमारे समय की व्याख्या के लिए जरूरी औजारों से लैश होकर। इसे ही सरलीकृत तरीके से इतिहास का दोहराव भी कहते हैं। 21वीं सदी की दस्तक के साथ विश्व इतिहास ने वह घटनाक्रम भी देखा जिसने हमारे दौर की हिंसा का सबसे नग्न चेहरा सामने आया। खबरों पर बारीक नजर रखने वालों को 2003 के इराक युद्ध का रातोंरात बदलता और गहराता घटनाक्रम आज भी याद है। ऐसे लोग तब के अखबारों में आई इस रिपोर्ट को भूले नहीं होंगे कि जंग के आगाज से पहले सबसे ज्यादा चहल-पहल वहां प्रसूति गृहों में देखी गई थी। सैकड़ों-हजारों की संख्या में गर्भवती महिलाएं अपने बच्चों को समय पूर्व जन्म देने के लिए वहां जुटने लगी थीं। यही नहीं ये माताएं जन्म देने के बाद अपने बच्चे को अस्पताल में ही छोड़कर घर जाने की जिद्द करती थीं। पूरी दुनिया से जो पत्रकार युद्ध और युद्धपूर्व की इराकी हालात की रिपोर्टिंग करने वहां गए थे, उनके लिए यह एक विचलित कर देने वाला अनुभव था।
पहली नजर में यही समझ में आ रहा था कि युद्ध की विभिषिका ने ममता की गोद को भी पत्थरा दिया है। पर ऐसा था नहीं। सामान्य तौर पर युद्ध के दौरान स्कूलों-अस्पतालों पर किसी तरह का आक्रमण नहीं किया जाता। और इराक की माताएं नहीं चाहती थीं कि उनका नौनिहाल युद्ध की भेंट चढ़ें। इसलिए उसके समय पूर्व जन्म से लेकर उनकी जीवन सुरक्षा को लेकर वे प्राणपन से तत्पर थीं। करीब आठ साल पहले इराक में मां और ममता का जो आंखों को नम कर देने वाला आख्यान लिखा गया, उसका दूसरा खंड इन दिनों अपने देश में लिखा जा रहा है। हाल की एक खबर में यह आया कि उत्तर प्रदेश में करीब 40 हजार सिपाहियों की भर्ती होनी है। भर्ती का यह मौका वहां के लोगों के लिए इसलिए भी बड़ा है कि इनमें महिला-पुरुष दोनों के लिए बराबर का मौका  है।
प्रदेश में बेराजगारी का आलम यह है कि गर्भवती युवतियां अपनी कोख के साथ खिलवाड़ कर नौकरी की इस होड़ में शामिल होना चाहती हैं। धन्य हैं वे डॉक्टर भी जो अपने पेशागत धर्म को भूलकर एक अमानवीय और बर्बर ठहराए जाने वाले कृत्य को मदद पहुंचा रहे हैं। महज नौकरी की लालच में बड़े पैमाने पर गर्भपात कराने का ऐसा मामला देश-दुनिया में शायद ही इससे पहले कभी सुना गया हो। मायावती सरकार के कानों तक भी यह शिकायत पहुंची है। अच्छी बात यह है कि सरकार ने इस शिकायत को दरकिनार या खारिज नहीं किया है और वह इस मामले में निजी चिकित्सकों से निपटने की बात कह रही है।
पर असल मुद्दा इस मामले में कार्रवाई से ज्यादा उस नौबत को समझना है, जिसने ममता की सजलता को निर्जल बना दिया। क्या इस घटना से सिर्फ यह साबित होता है कि रोटी की भूख और बेरोजगारी के दंश के आगे हर मानवीय सरोकार बेमानी हैं या यह घटना इस बात की गवाही है कि संवेदना के सबसे सुरक्षित दायरे भी आज सुरक्षित नहीं रहे। यौन हिंसा से लेकर संबंधों की तोड़-जोड़ की खबरों की गिनती और आमद अब इतनी बढ़ गई है कि इन्हें अब लोग रुटीन खबरों की तरह लेने लगे हैं। इन्हें पढ़कर न अब कोई चौंकता है और न ही कोई हाय-तौबा मचती है।
बहरहाल, यह बात भी अपनी जगह नकारी नहीं जा सकती कि अपने देश में महिला सम्मान और उसके अधिकार और महत्व को लेकर बहस किसी अन्य देश या संस्कृति से पुरानी है। दिलचस्प है कि लोक और परंपरा के साथ सिंची जाती हरियाली आज समय की सबसे तेज तपिश की झुलस से बचने के लिए हाथ-पैर मार रही है। रोटी का तर्क मातृत्व के संवेदनशील तकाजे पर भी भारी पड़ सकता है, यह जानना अपने देशकाल को उसके सबसे बुरे हश्र के साथ जानने जैसा है। भारत और भारतीय परंपरा के हिमायतियों को भी सोचना होगा कि वह इस क्रूर सच का चेहरा कैसे बदलेंगे। क्योंकि अगर परंपरा का बहाव जहरीला हो जाए तो उसका आगे का सफर और गंतव्य भी सुरक्षित तो नहीं ही रहेगा।

7 टिप्‍पणियां:

  1. सारगर्भित आलेख ...
    कभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. अपने समय से संवाद करती हुई पोस्ट .आज की बे -बसी ,संवेदन शून्य ज़िन्दगी का दस्तावेज़ है यह मार्मिक पोस्ट ..http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/09/blog-post_13.हटमल
    अफवाह फैलाना नहीं है वकील का काम .

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut samvedansheel vishay hai ye. maatritw ko bachaya jaaye ya roti ka jugaad kiya jaaye. sarkaari nitiyaan jab tak nahin badlengi tab tak aise hin hota rahega. har ek naagrik ko kaam mile to kyon koi aurat aisa kare? pet ki bhookh ke aage sab kuchh ganawana padta hai. jaagrook aalekh, shubhkaamnaayen.

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरे लिए ये खबर/जानकारियां बिलकुल नवीन हैं...

    अन्दर तक हिला दिया इसने....कुछ कहते नहीं बन पड़ रहा....

    साधुवाद आपका इस महत्वपूर्ण विचारणीय विषय पर विमर्श के लिए...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही संवेदनशील और गंभीर मुद्दा है ....

    जवाब देंहटाएं
  6. शुक्रिया रेखा...! शुक्रिया रंजना...! शुक्रिया जेन्नी...! शुक्रिया veerubhai...!

    जवाब देंहटाएं