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शनिवार, 11 सितंबर 2010

बोल्ड लीला


कृष्ण जन्माष्टमी का हर्षोल्लास इस बार भी बीते बरसों की तरह ही दिखा। मंदिरों-पांडालों में कृष्ण जन्मोत्सव की भव्य तैयारियां आैर दही-हांडी फोड़ने को लेकर होने वाले आयोजनों की गिनती आैर बढ़ गई। मीडिया में भी जन्माष्टमी का क्रेज लगता बढ़ता जा रहा है। पर्व आैर परंपरा के मेल को निभाने या मनाने से ज्यादा उसे देखने-दिखाने की होड़ हर जगह दिखी। जब होड़ तगड़ी हो तो उसमें शामिल होने वालों की ललक कैसे छलकती है, वह इस बार खास तौर पर दिखा। दिलचस्प है कि कृष्ण मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं बल्कि लीला पुरुषोत्तम हैं, उनकी यह लोक छवि अब तक कवियों-कलाकारों को उनके आख्यान गढ़ने में मदद करती रही है। अब यही छूट बाजार उठा रहा है।
हमारे लोकपर्व अब हमारे कितने रहे, उस पर हमारी परंपराओं का रंग कितना चढ़ा या बचा हुआ है आैर इन सब के साथ उसके संपूर्ण आयोजन का लोक तर्क किस तरह बदल रहा है, ये सवाल चरम भोग के दौर में भले बड़े न जान पड़ें पर हैं ये बहुत जरूरी। मेरे एक सोशल एक्टिविस्ट साथी अंशु ने ईमेल के जरिए सूचना दी कि इस बार कृष्णाष्टमी पर नए तरह की ई-ग्रीटिंग मिली। उन्हें किसी रिती देसाई का मेल मिला। मेल में जन्माष्टमी की शुभकामनाएं हैं आैर साथ में है उसकी एस्कार्ट कंपनी का विज्ञापन, जिसमें एक खास रकम के बदले दिल्ली, मुंबई आैर गुजरात में कार्लगर्ल की मनमाफिक सेवाएं मुहैया कराने का वादा किया गया है। मेल के साथ मोबाइल नंबर भी है आैर वेब एड्रेस भी। मित्र को जितना मेल ने हैरान नहीं किया उससे ज्यादा देहधंधा के इस हाईटेक खेल के तरीके ने परेशान किया।
लगे हाथ जन्माष्टमी पर इस साल दिखी एक आैर छटा का जिक्र। बार बालाओं से एलानिया मुक्ति पा चुकी मायानगरी मुंबई से इस बार खबर आई कि चौक-चारौहों पर होने वाले दही-हांडी उत्सव अब पब्स तक पहुंच चुके हैं। जो तस्वीर दिखाई गई उसमें बिग बॉस विनर विंदु दारा सिंह आैर उनके कुछ साथी ठेहुने से ऊपर तक स्कीनी आउटफिट पहनी एक लड़की को अपने कंधों पर हांडी फोड़ने के लिए चढ़ा रहे थे। तस्वीर के साथ टीवी संवाददाता यह भी बताता चल रहा था कि मुंबई में इस तरह का यह कोई अकेला आयोजन नहीं है। हाल के सालों में गरबा के बाद यह दूसरा बड़ा मामला है, जब किसी लोकोत्सव पर बाजार ने मनचाहे तरीके से डोरे डाले हैं। ऐसा भला हो भी क्यों नहीं क्योंकि आज भक्ति का बाजार सबसे बड़ा है आैर इसी के साथ डैने फैला रहा है भक्तिमय मस्ती का सुरूर। मामला मस्ती का हो आैर देह प्रसंग न खुले ऐसा तो संभव ही नहीं है।
बात कृष्णाष्टमी की चली है तो यह जान लेना जरूरी है कि देश में अब तक कई शोध हो चुके हैं जो कृष्ण के साथ राधा आैर गोपियों की संगति की पड़ताल करते हैं। महाभारत में न तो गोपियां हैं आैर न राधा। इन दोनों का प्रादुर्भाव भक्तिकाल के बाद रीतिकाल में हुआ। रवींद्र जैन की मशहूर पंक्तियां हैं- "सुना है न कोई थी राधिका/ कृष्ण की कल्पना राधिका बन गई/ ऐसी प्रीत निभाई इन प्रेमी दिलों ने/ प्रेमियों के लिए भूमिका बन गई।' दरअसल राम आैर कृष्ण लोक आस्था के सबसे बड़े आलंबन हैं। पर राम के साथ माधुर्य आैर प्रेम की बजाय आदर्श आैर मर्यादा का साहचर्य ज्यादा स्वाभाविक दिखता है। इसके लिए गुंजाइश कृष्ण में ज्यादा है। वे हैं भी लीलाधारी, जितना लीक पर उतना ही लीक से उतरे हुए भी। सो कवियों-कलाकारों ने उनके व्यक्तित्व के इस लोच का भरसक फायदा उठाया। लोक इच्छा भी कहीं न कहीं ऐसी ही थी।
नतीजतन किस्से-कहानियों आैर ललित पदों के साथ तस्वीरों की ऐसी अनंत परंपरा शुरू हुई, जिसमें राधा-कृष्ण के साथ के न जाने कितने सम्मोहक रूप रच डाले गए। आज जबकि प्रेम की चर्चा बगैर देह प्रसंग के पूरी ही नहीं होती तो यह कैसे संभव है कि प्रेम के सबसे बड़े लोकनायक का जन्मोत्सव "बोल्ड' न हो। इसलिए भाई अंशु की चिंता हो या मीडिया में जन्माष्टमी के बोल्ड होते चलन पर दिखावे का शोर-शराबा। इतना तो समझ ही लेना होगा कि भक्ति अगर सनसनाए नहीं आैर प्रेम मस्ती न दे, तो सेक्स आैर सेंसेक्स के दौर में इनका टिक पाना नामुमकिन है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. padh ke ghore aascharyee ho raha hai...ye Bold Lila hai...Ya beast Lila"Parv tyohar ki pavitrata to reh hi nhi gae...kaise samaj aur kya siksha de paenge ham apne bachoo ko...kafii dukh hua..ess sthiti pe..

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  2. ...maina ya tb b pdha tha...jb ap esa complete kr rha tha...blog pr fir sa pdhna acha lga...mera kuch friends na b pdha...sbna tarif ke...sch ma ap likhta bhut acha han...

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