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मंगलवार, 28 सितंबर 2010

गोसार्इं का गांव


गोसार्इं पूजने
पहुंचा हूं गांव
आज शाम से पहले

तीन दिन पहले
जाते हुए गांव
और उससे पहले
तिलक के समय भी
आया था गांव
काकी के मरने के बाद
अठारह-उन्नीस साल बाद

कोई पूछता नहीं
इस तरह कि
क्यों भूले-भटके
पहंुच जाते हैं गांव
क्यों आते हैं गांव या कि
अब तुम्हारा नहीं रहा गांव

मुझे पाकर भदेस यह
धनी हो जाता है
मैं जब भी आऊं
जितनी बार आऊं
गांव मेरा ऋणी हो जाता है

पूछना तो वैसे
ऐसा भी हो सकता है
आ गये मियां
कहां अपने गांव
नहीं अपना नहीं
गोसार्इं का गांव

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