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शुक्रवार, 21 मार्च 2014

इंदिरा के खिलाफ जीत का 'राज’


1977 के चुनाव में केंद्र की राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व को जनता ने करारा जवाब दिया था। जेपी आंदोलन से निकली जनता पार्टी की पूरे उत्तर और मध्य भारत में एक तरह से लहर थी।
इस लहर में कांग्रेसी राजनीति के कई सूरमाओं को संसद का मुंह नहीं देखने दिया। पर इंदिरा गांधी की हार ने सबको चौंकाया। इमरजेंसी को लेकर इंदिरा के खिलाफ एक दृढ़ जनभावना जरूर थी, पर वह चुनाव तक हार जाएंगी, इसकी उम्मीद उनके विरोधियों को भी नहीं थी। इंदिरा को जानेमाने समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनावी शिकस्त दी और वह भी उनके गढ़ रायबरेली में।
दरअसल, इंदिरा और कांग्रेस के खिलाफ अपने घोषित सैद्धांतिक विरोध के कारण राजनारायण 1971 में भी रायबरेली से इंदिरा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे थे। पर उन्हें पटखनी खानी पड़ी थी। इस पराजय के चार साल बाद राजनारायण ने चुनाव परिणाम के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की।
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सबूतों को गंभीर और पर्याप्त मानते हुए इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाया। उनकी सांसदी को तो अवैध करार दिया ही गया, छह सालों के लिए उनके चुनाव लड़ने पर बैन भी लगा दिया गया।
इंदिरा को इस फैसले ने गुस्से से भर दिया और उन्होंने इस्तीफा देने से मना कर दिया। इस दौरान वह जेपी आंदोलन के कारण पहले से परेशान चल रही थीं। इन्हीं परेशानियों के बीच इंदिरा ने 26 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी।
जनवरी 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने आपातकाल समाप्त कर लोकसभा चुनाव की घोषणा की। राजनारायण फिर से रायबरेली में उन्हें चुनौती देने के लिए मैदान में उतरे।
इस चुनाव में समाजवादी राजनारायण ने जीत दर्ज कराकर दिखा दिया कि लोकतंत्र में किसी का भी विरोध असंभव नहीं है और जनता की अदालत में अन्याय हमेशा हारता है। भारतीय लोकतंत्र की यही खासियत उसकी असली ताकत है।
 

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