एक दशक पूर्व जब अफागानिस्तान में तालिबानियों ने बामियान की बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कर अपनी बर्बरता दिखाई थी तब इसकी चौतरफा आलोचना हुई थी। यहां तक कि इस्लाम के नाम पर आतंकी गतिविधियां चलाने वाले समूहों में भी इस कार्रवाई को लेकर मतभेद उभरे थे। एक दशक बाद एक बार फिर पूरी दुनिया में धार्मिक असंवेदनशीलता का एक नया दौर शुरू हुआ है। पैगंबर मोहम्मद की कथित आलोचना वाली अमेरिकी फिल्म 'इन्नोसेंस ऑफ मुस्लिम्स' के खिलाफ पूरी दुनिया में प्रतिरोध में लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। आगजनी हो रही है। खून-खराबे हो रहे हैं। प्रतिरोध के ये स्वर संयुक्त राष्ट्र तक गूंजे। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर जहां अपनी सफाई रखी, वहीं यह कहकर मामले को एक तरह से तूल भी दे दी कि किसी धर्म विशेष की निंदा-आलोचना पर मुखर होने वालों को बाकी धर्मों के प्रति भी समान नजरिया अपनाना चाहिए। यह एक भड़काने वाला बयान भले न सही पर इससे अमेरिकी फिल्म से दुनिया भर में भड़के आक्रोश को और बढ़ाया ही।
वैसे धर्म के नाम पर होने वाले प्रतिरोध की दलीलों और वजहों को तो फिर भी समझा जा सकता है। आखिर धार्मिकआस्था एक संवेदनशील मुद्दा है और किसी को भी जानबूझकर इसे भड़काने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। पर अफसोसनाक यह है कि प्रतिरोध की इस आड़ में लूटमार और हिंसा की बड़ी घटनाएं भी होती हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि अकसर ऐसे मौकों पर समाज के कुछ अराजक तत्व सक्रिय हो जाते हैं और वे शांति और सौहार्द का माहौल बिगाड़ने लगते हैं।
बांग्लादेश में जो घटना घटी उसमें कथित तौर पर एक बौद्ध धर्मावलंबी ने अपने फेसबुक एकाउंट में पवित्र कुरानशरीफ की जली प्रति की तस्वीर पोस्ट कर दी थी। हालांकि ऐसा करने वाले ने इसे जानबूझकर किया गया कृत्य न मानकर एक चूक बताया है। बावजूद इसके वहां की बहुसंख्यक आबादी इस बात पर भड़क उठी। आधी रात के बाद वहां हजारों लोग इस कृत्य के विरोध में प्रदर्शन करने लगे। इस दौरान ही कुछ अराजक मानसिकता के लोगों ने वहां कम से कम 11 बौद्ध मंदिरों को जला डाला। इस घटना ने बामियान की एक दशक पुरानी घटना की याद ताजा कर दी है।
अभी पिछले साल ही खबर आई थी कि जर्मनी के म्युनिख विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर और उनके कुछ साथी शोधार्थियों ने बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को पुनस्र्थापित करने की पहल शुरू की है। ये लोग शांति का संदेश देने वाली इन ऐतिहासिक प्रतिमाओं का महत्व इस रूप में देख रहे थे कि इनकी उपस्थिति से विश्व मानवता का प्रेम और सौहार्द का संकल्प मजबूत होता है।
दिलचस्प है कि पूरी दुनिया में जहां-जहां भी बौद्ध धर्मावलंबी हैं, उनका नाम शायद ही कभी धार्मिक टकराव की किसी घटना में आया हो। जिस बांग्लादेश में बौद्ध मंदिरों को जलाया गया, वहां तो उनकी बमुश्किल एक फीसद आबादी है। इससे पूर्व वहां कभी धार्मिक हिंसा की खबर आई भी है तो वह बहुसंख्यक मुस्लिमों और अल्पसंख्यक हिंदुओं के कारण। बौद्धों के प्रति किसी दूसरे मजहब के लोगों के आक्रोशित होने की ऐसी खबर अब तक दुनिया के किसी हिस्से से आई संभवत: पहली खबर है। साफ है कि धार्मिक असहिष्णुता का पागलपन अगर हम नहीं रोक पाते हैं तो इसका अनिष्ट भविष्य में और भी बड़ा हो सकता है।
वैसे धर्म के नाम पर होने वाले प्रतिरोध की दलीलों और वजहों को तो फिर भी समझा जा सकता है। आखिर धार्मिकआस्था एक संवेदनशील मुद्दा है और किसी को भी जानबूझकर इसे भड़काने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। पर अफसोसनाक यह है कि प्रतिरोध की इस आड़ में लूटमार और हिंसा की बड़ी घटनाएं भी होती हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि अकसर ऐसे मौकों पर समाज के कुछ अराजक तत्व सक्रिय हो जाते हैं और वे शांति और सौहार्द का माहौल बिगाड़ने लगते हैं।
बांग्लादेश में जो घटना घटी उसमें कथित तौर पर एक बौद्ध धर्मावलंबी ने अपने फेसबुक एकाउंट में पवित्र कुरानशरीफ की जली प्रति की तस्वीर पोस्ट कर दी थी। हालांकि ऐसा करने वाले ने इसे जानबूझकर किया गया कृत्य न मानकर एक चूक बताया है। बावजूद इसके वहां की बहुसंख्यक आबादी इस बात पर भड़क उठी। आधी रात के बाद वहां हजारों लोग इस कृत्य के विरोध में प्रदर्शन करने लगे। इस दौरान ही कुछ अराजक मानसिकता के लोगों ने वहां कम से कम 11 बौद्ध मंदिरों को जला डाला। इस घटना ने बामियान की एक दशक पुरानी घटना की याद ताजा कर दी है।
अभी पिछले साल ही खबर आई थी कि जर्मनी के म्युनिख विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर और उनके कुछ साथी शोधार्थियों ने बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को पुनस्र्थापित करने की पहल शुरू की है। ये लोग शांति का संदेश देने वाली इन ऐतिहासिक प्रतिमाओं का महत्व इस रूप में देख रहे थे कि इनकी उपस्थिति से विश्व मानवता का प्रेम और सौहार्द का संकल्प मजबूत होता है।
दिलचस्प है कि पूरी दुनिया में जहां-जहां भी बौद्ध धर्मावलंबी हैं, उनका नाम शायद ही कभी धार्मिक टकराव की किसी घटना में आया हो। जिस बांग्लादेश में बौद्ध मंदिरों को जलाया गया, वहां तो उनकी बमुश्किल एक फीसद आबादी है। इससे पूर्व वहां कभी धार्मिक हिंसा की खबर आई भी है तो वह बहुसंख्यक मुस्लिमों और अल्पसंख्यक हिंदुओं के कारण। बौद्धों के प्रति किसी दूसरे मजहब के लोगों के आक्रोशित होने की ऐसी खबर अब तक दुनिया के किसी हिस्से से आई संभवत: पहली खबर है। साफ है कि धार्मिक असहिष्णुता का पागलपन अगर हम नहीं रोक पाते हैं तो इसका अनिष्ट भविष्य में और भी बड़ा हो सकता है।
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