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शनिवार, 21 जुलाई 2012

अच्छा तो हम चलते हैं...!


हिंदी सिनेमा के एक स्टार का कद वास्तविकता से कितना बड़ा हो सकता है, यह सवाल जब भी पूछा जाएगा तो जिक्र सबसे पहले बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना उर्फ काका का ही होगा। काका से पहले फिल्मी स्टारडम की ऐसी दीवानगी अगर किसी कलाकार को लेकर पैदा हुई तो वह केएल सहगल थे। राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार की त्रयी इनसे अलग है। इन कलाकारों के साथ हिंदी सिनेमा का रचनात्मक सफर ऊंचाइयों पर पहुंचा। पर बात अगर करेंगे सिनेमा के माध्यम से समाज की आंखों में उतरने वाले सपनों की तो राजेश खन्ना इन सपनों के चक्रवर्ती राजा थे। बुजुर्गो ने फिल्म ‘आनंद’ में उनके कैंसर से मरने के दर्दनाक सीन में ‘जिंदगी की पहेली’ को समझा तो युवाओं ने कटी पतंग, आराधना, अमर प्रेम जैसी फिल्मों में राजे-रजवाड़ों के जमाने के प्रेमी नायकों को भूल उनमें नए दौर और समाज का फैशनेबल- रोमांटिक आइकन देखा। मांओं ने अपने बच्चों के नाम ‘राजेश’ रखने शुरू कर दिए। लोकप्रियता की यह हद यहां तक गई कि उस दौर में मुहावरा ही चल पड़ा- ऊपर आका और नीचे काका।
कहने की जरूरत नहीं कि सौ साल के भारतीय सिनेमा के सफर का यह सबसे चमकता सितारा अपने पीछे जो अफसाने छोड़ गया है, वह उनके न रहने के बाद भी उनके चाहने वालों के बीच उनकी मौजूदगी को दशकों तक बहाल रखेगा। दिलचस्प है कि 21वीं सदी में हिंदी सिनेमा का मल्टीप्लेक्स मार्का कल्चर जिस रेट्रो लुक को पर्दे पर उतारने में लगा है, राजेश खन्ना उस रेट्रो दौर के महानायक थे। यह वही दौर था जब हिंदी साहित्य के बड़े कहानीकारों और उपन्यासकारों पर गुलशन नंदा के रोमानी कथानक भारी पड़ रहे थे। जिंदगी की खुरदुरी सचाइयों और चुनौतियों के सामने सिनेमाई रोमांस का जो इंद्रधनुष राजेश खन्ना की फिल्मों ने बनाया, उसकी चर्चा अब लोग एक कीर्तिमान से भी आगे सुनहरी किंवदंती के रूप में करते हैं।
बहरहाल, काका अपने पीछे सिर्फ चमक और लोकप्रियता की धूम ही नहीं छोड़ गए हैं। उनका ‘सफर’ अपने आखिरी मुकाम तक पहुंचते-पहुंचते ‘आनंद’ से दुखांत में बदल गया। भले यह प्रतीकात्मक हो पर अपने हालिया विज्ञापन अवतार में लोग जब ढलती काया और कांपती आवाज में उन्हें यह कहते सुनते हैं कि मेरे फैंस मुझसे कोई नहीं छीन सकता तो साफ लगता है कि अपने उजास के दिन बीत जीने के बाद भी राजेश खन्ना को तलाश उसी चौंध की थी, जो कभी उनके नाम के जिक्र मात्र से पैदा हो जाया करती थी।
 काका अपने ही दौर के कई सितारों के मुकाबले इस मामले में निहायत ही अविवेकी साबित हुए कि उन्हें ‘अपने समय’ को मुट्ठी में भरने के आत्मविास का एहसास तो खूब हुआ पर उसे रेत की तरह मुट्ठी से फिसलते जाने का पता ही नहीं चला। सत्तर के दौर में चढ़ा उनका जादू अस्सी के दौर के बीतते-बीतते पूरी तरह उतार पर था। न वह बदलते समय, समाज और सिनेमा को समझ सके और न ही अपनी निजी जिंदगी में बदलती वास्तविकताओं से समन्वय बैठा पाए। यहां तक कि राजनीति का रुख भी उन्होंने किया पर मैदान बीच में ही छोड़ चले। आज जब काका नहीं हैं तो उनके यादगार गानों और संवादों की हर तरफ चर्चा है।
बीते दौर की इस गूंज-अनगूंज को सुनकर जेहन में आखिरी बात यही आती है कि जीवन के कुछ चित्र भले सदाबहार हों पर उसकी वास्तविकता इतनी ही कोमल और सब्ज कभी नहीं होती।
                                     (राष्ट्रीय सहारा  19.07.2012)

4 टिप्‍पणियां:

  1. well written prem,ANAND TO SHASWAT HAI...ANAND KABHI MARA NAHI KARTE....jab padhta tha to amitabh ka daur tha...angri youngman ki, aakrosh ki pahchan the amit ji, lekin usi daur me ANAND bhi dekhi....dekhne gaye to amitabh ki film ko lekin laute to ANAND (rajesh khanna) mere & mere sabhi mitro ke dilo per NAQSH kar chuke the. yesa nahi tha kaka ki filme pahle nahi dekhi thi, lekin ANAND ka jeevant role jo dilo-dimag me basa to abhi bhi basa hi hai....Bhartiya janmas ke dilon me bhi. jeevan jeene ki jo sanatani bhartiya parampara hai anand uska pratibimb hai... har kisi ke man me anand jaisi zindagi jeene ki khwahish hoti hai, per jee kitne pate hai.....MAHABHRAT ka kaal Krishna & Arjun ki kahani hai, lekin kisi ek character chunne ko kaha jaye to nisandesh adhiktar log ABHIMANYU ka naam lege, usi tarah Anand hai, Maut ko jante huye jeena BHartiya Sanatan Dharm ki philosphy hai,isi tarah muslim dharm me Huasin sahib hai jinhe bhartiye janmanas bhi usi tarrah pujta hai.....ANAND ka charitra bhi jeevan darshan se bharpur usi tararh gadha na hrishikesh mukharji ne, jise kaka ne amar bana diya...film ka ek-ek charitra amitabh bacchan, lalita pawar, jani wakar, ramesh deo, asit sen etc yese gadhe gaye ki lajawab....salil chaudhary ka sangeet & yogesh ke geet & gulzar ki kavita ne film me char chand lagaye lekin adakari ke jis jauhar se rajesh khanna ne ANAND ko jiya wo hamesha-hamesha ke liye amar ho gaya...meri kaka ko vinamra shirdhanjali.....kash hum bhi ANAND sa jee pate.....

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  2. shukriya Piyush Bhai...Apko acha lga... aur Kaka ko lekr apna bhi kuch jo kuch aur baten khi wo bhi achi hain...aabhar fir sa...

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  3. अच्‍छा तो हम चलते हैं ..

    बहुत सुंदर प्रस्‍तुति !!

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