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रविवार, 1 जुलाई 2012

मां को एक दिवसीय प्रणाम

किसी को अगर यह शिकायत है कि परंपरा, परिवार, संबंध और संवेदना के लिए मौजूदा दौर में स्पेस लगातार कम होते जा रहे हैं, तो उसे नए बाजार बोध और प्रचलन के बारे में जानकारी बढ़ा लेनी चाहिए। जो सालभर हमें याद दिलाते चलते हैं कि हमें कब किसके लिए ग्रीटिंग कार्ड खरीदना है और कब किसे किस रंग का गुलाब भेंट करना है। बहरहाल, बात उस दिन की जिसे मनाने को लेकर हर तरफ चहल-पहल है। मदर्स डे वैसे तो आमतौर पर मई के दूसरे रविवार को मनाने का चलन है। पर खासतौर पर स्कूलों में इसे एक-दो दिन पहले ही मना लिया गया ताकि हफ्ते की छुट्टी बर्बाद न चली जाए।
रही बात भारतीय मांओं की स्थिति की तो गर्दन ऊंची करने से लेकर सिर झुकाने तक, दोंनो तरह के तथ्य सामने हैं। कॉरपोरेट दुनिया में महिला बॉसों की गिनती अब अपवाद से आगे कार्यकुशलता और क्षमता की एक नवीन परंपरा का रूप ले चुकी है। सिनेजगत में तो आज बकायदा एक पूरी फेहरिस्त है, ऐसी अभिनेत्रियों की जो विवाह के बाद करियर को अलविदा कहने के बजाय और ऊर्जा-उत्साह से अपनी काविलियत साबित कर रही हैं। देश की राजनीति में भी बगैर किसी विरासत के महिला नेतृत्व की एक पूरी खेप सामने आई है। पर गदगद कर देने वाली इन उपलब्धियों के बीच जीवन और समाज के भीतर परिवर्तन का उभार अब भी कई मामलों में असंतोषजनक है।
आलम यह है कि मातृत्व को सम्मान देने की बात तो दूर देश में आज तमाम ऐसे संपन्न, शिक्षित और जागरूक परिवार हैं, जहां बेटियों की हत्या गर्भ में ही कर दी जाती है। अभी इसी मुद्दे पर टीवी पर अभिनेता आमिर खान के शो की हर तरफ चर्चा है। रही जहां तक प्रसव और शिशु जन्म की बात तो यहां भी सचाई कम शर्मनाक नहीं है। देश में आज भी तमाम ऐसे गांव-कस्बे हैं, जहां प्रसव देखभाल की चिकित्सीय सुविधा नदारद है। जहां इस तरह की सुविधा है भी वहां भी व्यवस्थागत कमियों का अंबार है। सेव द चिल्ड्रेन ने अपनी सालाना रिपोर्ट वल्ड्र्स मदर्स-2012 में भारत को मां बनने के लिए खराब देशों में शुमार करते हुए उसे 80 विकासशील देशों में 76वें स्थान पर रखा है। स्थिति यह है कि देश में 140 महिलाओं में से एक की प्रसव के दौरान मौत हो जाती है। स्वास्थ्य सेवा की स्थिति इतनी बदतर है कि मात्र 53 फीसद प्रसव ही अस्पतालों में होते हैं। ऐसे में जो बच्चे जन्म भी लेते हैं, उनकी भी स्थिति अच्छी नहीं है। पांच साल की उम्र तक के बच्चों में 43 फीसद बच्चे अंडरवेट हैं।
टीयर-2 देशों की बात करें तो सर्वाधिक बाल कुपोषित बच्चे भारत में ही हैं। ऐसी दुरावस्था में हमारी सरकार अगर देशवासियों को मदर्स डे की शुभकामनाएं देती है और समाज का एक वर्ग इस एक दिनी उत्साह में मातृत्व के प्रति आैपचारिक आभार की शालीनता प्रकट करने में विनम्र होना नहीं भूलता तो यह देश की तमाम मांओं के प्रति हमारी संवेदना के सच को बयां करने के लिए काफी है।   

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