होली पर्व प्रह्लाद और होलिका के पौराणिक प्रसंग से भले जुड़ता हो पर इसका असली रंग तो घर-परिवार और सामाज में ही देखने को मिलता है। भले अब होली का रंग थोड़ा बदरंग हो गया हो और खास तौर पर महिलाएं इसे मनाने से बचने लगी हैं। पर अब भी देश के ज्यादातर हिस्सों और परिवारों में होली उत्साह, मस्ती और आनंद का सौगात लेकर आता है। एक लोकपर्व के रूप में इस अनूठे त्योहार की लोकप्रियता पूरी दुनिया में इस कदर फैली है कि बिल Ïक्लटिंन की बेटी तक फगुनाहट की मस्ती में सराबोर होने के लिए राजस्थान पहुंचती है।
वैसे तो होली पूरे देश में मनाई जाती है पर अलग-अलग सांस्कृतिक अंचलों की होली की अपनी खासियत है। हां, एक बात जो सभी जगहों की होली में सामान्य है, वह है महिलाओं और पुरुषों के बीच रंग खेलने के बहाने अनूठे विनोदपूर्ण और शरारत से भरे प्रसंग। ये प्रसंग शुरू से होली की पहचान से जुड़े रहे हैं। और ऐसा भी नहीं है कि इस मस्ती में नहाने वाले कोई एक धर्म या संप्रदाय के लोग हों। आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की लिखी होली आज भी लोग गाते हैं- 'क्यों मोपे मारे रंग की पिचकारी, देखो कुंअर जी दूंगी गारी।' फिल्मों के गीत याद करें तो चुहल और ठिठोली के कई बोल जेहन में एक के बाद एक आने लगते हैं। 'मदर इंडिया' के गीत 'होली आई रे कन्हाई रंग बरसे...सुना दे जरा बांसुरी' से लेकर "वक्त' फिल्म का माडर्न होली सांग 'गिव मी ए फेवर लेट्स प्ले होली...' तक फिल्मी होली गीतों की ऐसी पूरी श्रृंखला है, जहां होली के रंगों के बीच हीरो-हीरोइन के बीच दिलचस्प छेड़छाड़ चलती है। बात पूरबिया होली की करें तो यहां होली का रंग सबसे ठेठ और मस्ती से सराबोर है। यहां की होली का मस्ताना रंग यहां के पारंपरिक लोकगीतों में बी बखूबी मुखरित हुआ है। 'बंगला पे उड़ेला गुलाल...' से लेकर 'अंखिया लाले लाल...' तक कई ऐसे पारंपरिक गीत हैं जो आज भी गाए जाते हैं। दुखद है कि पारंपरिकता के इस अनमोल रंग में कुछ म्यूजिक कंपनियां और लोक गायक फूहड़ता और अश्लीलता का मिलावट कर रहे हैं, जिससे लोकरंग बदरंग हो रहा है। लोकगायिका मालिनी अवस्थी के मुताबिक, 'पारंपरिक होली गीतों की विरासत काफी समृद्ध और विविधता भरी है। बाजार के दौर में लोकगायकी को थोड़ा मिलावटी रंग जरूर दिया है पर आज भी पारंपरिक होली गीतों के कद्रदान ही ज्यादा हैं।'
इतिहासकार डॉ. शालिग्राम सिंह कहते हैं कि राधा-कृष्ण से लेकर जोधा-अकबर तक के विनोद पूर्ण होली प्रसंग देश में होली की परंपरा को रेखांकित करते हैं। आज भी होली में महिलाएं ही सबसे ज्यादा निशाने पर होती हैं और यह आलम घर-दफ्तर से लेकर स्कूल-कॉलेज तक सब जगह एक जैसी है। हाल के कुछ सालों में होली पर खुलकर नशा करने का प्रचलन बढ़ा है, जिससे अभद्रता से लेकर मारपीट तक की घटनाएं बढ़ गई हैं। दिल्ली के पालम इलाके में रहने वाली अमृता शर्मा बताती है कि वह होली पहले काफी उत्साह से मनाती थी क्योंकि उसे रंग बहुत पसंद हैं। पर अब वह घर से बाहर होली मनाने नहीं जाती क्योंकि इस दिन लड़कियों पर रंग भरे बैलून से लेकर कीचड़ तक फेंके जाते हैं, यही नहीं लड़के रंग लगाने के बहाने उनके साथ ओछी हरकत तक करने से बाज नहीं आते।
नोएडा निवासी सुमन भंडारी बताती हैं कि उनकी शादी दो साल पहले हुई है। होली के दिन उनके पति के दोस्त और देवर व उनके साथी होली करने की जिद करते हैं। सुमन बताती हैं कि ऐसे मौकों पर कई बार लोग नशे में भी रहते हैं और ऐसे में उन्हें अपनी सीमा का ख्याल नहीं रहता। इन अनुभवों से उलट आगरा की इंजीनियरिंग छात्रा नियति है, जिसे होली का इंतजार पूरे साल रहता है और वह अपनी सहेलियों के साथ इस दिन खूब मस्ती और हुड़दंग मचाती हैं। नियति कहती है कि होली रंग और उत्साह का त्योहार है और उसे अच्छा लगता है कि इस मौके पर वह अपनी सहेलियों के साथ खूब मस्ती करती हैं। वैसे नियति भी मानती है कि खास तौर पर होली पर युवतियों-महिलाओं का बाहर निकलना अब सहज नहीं रहा।
इस साल होली को शालीन, सभ्य और पारंपरिक तरीके से मनाने के लिए कई सामाजिक संगठनों मे पहल की है। होली मिलन की शक्ल में सामूहिक होली खेलकर सामाजिकता और पारिवारिकता के टूटते धागों को बांधने से लेकर बगैर पानी के होली खेलने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। उम्मीद है इस बार हाथ में पिचकारी लिए अमृता और सुमन जैसी लड़कियां बगैर किसी डर के होली का आनंद उठाएंगी तो नियति जैसी किशोरियों की होली की मस्ती इस बार और बढ़ जाएगी।
वैसे तो होली पूरे देश में मनाई जाती है पर अलग-अलग सांस्कृतिक अंचलों की होली की अपनी खासियत है। हां, एक बात जो सभी जगहों की होली में सामान्य है, वह है महिलाओं और पुरुषों के बीच रंग खेलने के बहाने अनूठे विनोदपूर्ण और शरारत से भरे प्रसंग। ये प्रसंग शुरू से होली की पहचान से जुड़े रहे हैं। और ऐसा भी नहीं है कि इस मस्ती में नहाने वाले कोई एक धर्म या संप्रदाय के लोग हों। आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की लिखी होली आज भी लोग गाते हैं- 'क्यों मोपे मारे रंग की पिचकारी, देखो कुंअर जी दूंगी गारी।' फिल्मों के गीत याद करें तो चुहल और ठिठोली के कई बोल जेहन में एक के बाद एक आने लगते हैं। 'मदर इंडिया' के गीत 'होली आई रे कन्हाई रंग बरसे...सुना दे जरा बांसुरी' से लेकर "वक्त' फिल्म का माडर्न होली सांग 'गिव मी ए फेवर लेट्स प्ले होली...' तक फिल्मी होली गीतों की ऐसी पूरी श्रृंखला है, जहां होली के रंगों के बीच हीरो-हीरोइन के बीच दिलचस्प छेड़छाड़ चलती है। बात पूरबिया होली की करें तो यहां होली का रंग सबसे ठेठ और मस्ती से सराबोर है। यहां की होली का मस्ताना रंग यहां के पारंपरिक लोकगीतों में बी बखूबी मुखरित हुआ है। 'बंगला पे उड़ेला गुलाल...' से लेकर 'अंखिया लाले लाल...' तक कई ऐसे पारंपरिक गीत हैं जो आज भी गाए जाते हैं। दुखद है कि पारंपरिकता के इस अनमोल रंग में कुछ म्यूजिक कंपनियां और लोक गायक फूहड़ता और अश्लीलता का मिलावट कर रहे हैं, जिससे लोकरंग बदरंग हो रहा है। लोकगायिका मालिनी अवस्थी के मुताबिक, 'पारंपरिक होली गीतों की विरासत काफी समृद्ध और विविधता भरी है। बाजार के दौर में लोकगायकी को थोड़ा मिलावटी रंग जरूर दिया है पर आज भी पारंपरिक होली गीतों के कद्रदान ही ज्यादा हैं।'
इतिहासकार डॉ. शालिग्राम सिंह कहते हैं कि राधा-कृष्ण से लेकर जोधा-अकबर तक के विनोद पूर्ण होली प्रसंग देश में होली की परंपरा को रेखांकित करते हैं। आज भी होली में महिलाएं ही सबसे ज्यादा निशाने पर होती हैं और यह आलम घर-दफ्तर से लेकर स्कूल-कॉलेज तक सब जगह एक जैसी है। हाल के कुछ सालों में होली पर खुलकर नशा करने का प्रचलन बढ़ा है, जिससे अभद्रता से लेकर मारपीट तक की घटनाएं बढ़ गई हैं। दिल्ली के पालम इलाके में रहने वाली अमृता शर्मा बताती है कि वह होली पहले काफी उत्साह से मनाती थी क्योंकि उसे रंग बहुत पसंद हैं। पर अब वह घर से बाहर होली मनाने नहीं जाती क्योंकि इस दिन लड़कियों पर रंग भरे बैलून से लेकर कीचड़ तक फेंके जाते हैं, यही नहीं लड़के रंग लगाने के बहाने उनके साथ ओछी हरकत तक करने से बाज नहीं आते।
नोएडा निवासी सुमन भंडारी बताती हैं कि उनकी शादी दो साल पहले हुई है। होली के दिन उनके पति के दोस्त और देवर व उनके साथी होली करने की जिद करते हैं। सुमन बताती हैं कि ऐसे मौकों पर कई बार लोग नशे में भी रहते हैं और ऐसे में उन्हें अपनी सीमा का ख्याल नहीं रहता। इन अनुभवों से उलट आगरा की इंजीनियरिंग छात्रा नियति है, जिसे होली का इंतजार पूरे साल रहता है और वह अपनी सहेलियों के साथ इस दिन खूब मस्ती और हुड़दंग मचाती हैं। नियति कहती है कि होली रंग और उत्साह का त्योहार है और उसे अच्छा लगता है कि इस मौके पर वह अपनी सहेलियों के साथ खूब मस्ती करती हैं। वैसे नियति भी मानती है कि खास तौर पर होली पर युवतियों-महिलाओं का बाहर निकलना अब सहज नहीं रहा।
इस साल होली को शालीन, सभ्य और पारंपरिक तरीके से मनाने के लिए कई सामाजिक संगठनों मे पहल की है। होली मिलन की शक्ल में सामूहिक होली खेलकर सामाजिकता और पारिवारिकता के टूटते धागों को बांधने से लेकर बगैर पानी के होली खेलने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। उम्मीद है इस बार हाथ में पिचकारी लिए अमृता और सुमन जैसी लड़कियां बगैर किसी डर के होली का आनंद उठाएंगी तो नियति जैसी किशोरियों की होली की मस्ती इस बार और बढ़ जाएगी।
अच्छा कदम, होली की मर्यादा बनी रही चाहिए यह रंग का त्यौहार है भंग का नहीं पुरबिया जी बहुत अच्छा आलेख आपको बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख..होली खुशियों का त्यौहार है और इसकी शालीनता को अभद्र व्यवहार से दूषित नहीं करना चाहिए..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कैलाश जी...एक बार फिर से हौसला बढ़ाने के लिए...
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