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सोमवार, 16 जून 2014

व्यास पीठ पर ताई


धवल-उदात्त चेहरा, आंखों पर टंगा कांच के थोड़े बड़े फ्रेम का चश्मा, पहनावे में आम तौर पर सूती या खादी की साड़ी, चलने-फिरने और बैठने-उठने का सलीका खासा ठहराव भरा, वैसे तो मितभाषी पर सार्वजनिक चिंता के मुद्दों पर मुखर, सुमित्रा महाजन की शख्सियत को यही कुछ बातें मुकम्मल और खास बनाती हैं। दरअसल, अपनी इन्हीं खूबियों के कारण ही वह अपने करीब के लोगों और अपने क्षेत्र में 'सुमित्रा ताई’ के रूप में लोकप्रिय हैं। नाम का रिश्ते में बदलना असाधारण बात है और सार्वजनिक जीवन में तो इस तरह की परंपरा अब न के बराबर रही है। सार्वजनिक जीवन में आए भरोसे के इस कमी को सुमित्रा जिस तरह पूरा कर रही हैं, वह उनके पूरे राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा प्रदेय है। लोकसभा अध्यक्ष के लिए निर्विरोध निर्वाचित होना और एक ही सीट से आठ बार संसद पहुंचना उनकी स्वीकृति के बड़े दायरे को रेखांकित करता है।
 यह गौरव की बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के व्यास पीठ पर एक महिला बैठेगी, प्रधानमंत्री ने इन्हीं शब्दों के साथ सुमित्रा महाजन को सर्वसम्मति के साथ लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने पर बधाई दी। बात करें सुमित्रा की तो उनका नाम लोकसभा अध्यक्ष बनने से पहले से ही चर्चा में आ गया था। यह चर्चा इसलिए शुरू हुई थी कि वह पिछले आठ बार से मध्य प्रदेश के इंदौर लोकसभा क्षेत्र से जीतती आ रही हैं। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड ही नहीं बल्कि बड़ी सफलता है।
सुमित्रा का जन्म 12 अप्रैल, 1943 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में चिपलुन नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम नीलकंठ साठे तथा माता का नाम ऊषा था। उन्होंने अपनी एमए तथा एलएलबी की डिग्री इंदौर विश्वविद्यालय -अब देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय- से प्राप्त की। उनका विवाह 29 जनवरी, 1965 को इंदौर के प्रसिद्ध वकील जयंत महाजन से हुआ था। चुनावी राजनीति में सुमित्रा का प्रवेश स्थानीय निकायों के जरिए हुआ। 1982 में वह इंदौर नगर निगम में उपमहापौर बनी थीं। 1989 में अपनी ससुराल इंदौर से उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा था। तब पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रकाश चंद्र सेठी को उनसे हार का सामना करना पड़ा था। पर बाद में तो वह इंदौर की जनता के मन में ऐसी बसीं कि आज तक वह स्थानीय स्तर पर सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। वह इंदौर में पहले 'बहू’ के तौर पर जानी गईं पर बहू के 'बेटी’ बनते देर नहीं लगी और अब तो वह वहां सबकी प्यारी 'ताई’ है। 71 वर्षीय सुमित्रा का आधिकारिक नाम भी 16वीं लोकसभा के सांसदों की सूची में सुमित्रा महाजन (ताई) के तौर पर दर्ज है। लोकप्रियता के इस सातत्य के पीछे सुमित्रा की बेदाग छवि का भी बड़ा योगदान है।
सुमित्रा संघर्ष में तपी नेता हैं। वह 16वीं लोकसभा में महिला सांसदों में सबसे वरिष्ठ सांसद हैं। मीरा कुमार के बाद महाजन लोकसभा अध्यक्ष बनने वाली दूसरी महिला हैं। उन्होंने एक सक्रिय सांसद के रूप में केवल महत्वपूर्ण समितियों का ही नेतृत्व नहीं किया है बल्कि वह सदन के भीतर अच्छी बहस करने वाली और एक उत्साही प्रश्नकर्ता भी रही हैं। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 1999 से 2००4 तक राज्यमंत्री रहीं। सौम्य व्यवहार करने वाली सुमित्रा एक ऐसी राजनेता के रूप में उभरी हैं जिन्होंने 1989 में इंदौर से सांसद बनने के बाद से कभी हार का मुंह नहीं देखा और विपक्षी नेताओं की एक पीढ़ी उन्हें हराने का इंतजार ही कर रही है।
लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने कहा, 'मैं लोकसभा में अधिक कामकाज पर जोर दूंगी। वहां एजेंडे को पूरा करने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष में अच्छा समन्वय होना चाहिए। लोगों को हमसे बहुत उम्मीदें हैं। हमें काम के घंटे बढ़ाने चाहिए।’ उम्मीद करनी चाहिए कि सुमित्रा अपने नए दायित्व की चुनौतियों पर खरी उतरेंगी। यह एक बड़ी परीक्षा है। क्योंकि पिछली लोकसभा के अंतिम कुछ सत्रों में कामकाज संसद सदस्यों के अत्यधिक शोर-शराबे के कारण प्रभावित हुआ था। पर लगता है सुमित्रा इस परीक्षा के लिए पूरी तरह तैयार हैं, तभी तो वह कहती हैं, 'उन्हें यह पता है कि इस तरह की परिस्थितियों से किस तरह निपटा जाता है।’
 

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