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रविवार, 1 जनवरी 2012

जागरण में पूरबिया की रात

मौसम का बारहमासी चित्त और चरित्र तक अब पहले जैसे नहीं रहे। जेठ की धूप और पूस की रात के परंपरागत अनुभव आज दूर तक खारिज हो चुके हैं। लिहाजा मौसम और प्रकृति के साथ हमारा रिश्ता अब वैसा नहीं रहा, जैसा हमारे पुरखों का था...
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31 दिसंबर 2011 को दैनिक जागरण, राष्ट्रीय स्तंभ के नियमित स्तंभ 'फिर से' में पूरबिया की रात

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर..आप को सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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