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सोमवार, 17 जून 2013

गांधी नहीं जाना चाहते थे अमेरिका


यह एक अजीब बात है कि महात्मा गांधी कभी अमेरिका नहीं गए। यही नहीं अपने वहां कभी न जाने के फैसले को लेकर उन्होंने अमेरिका को लेकर काफी तल्ख टिप्पणी भी की था। अमेरिका ने जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1945 में जापान पर एटम बम बरसाया तो मानवता के खिलाफ इस क्रूरतम कार्रवाई को लेकर लोग उनकी प्रतिक्रिया जानना चाहते थे। खासतौर पर उनके कई अमेरिकी समर्थकों ने उनसे बार-बार पूछा कि अमेरिकी मानसिकता को लेकर वे विश्व को कोई संदेश क्यों नहीं देते।
महात्मा से ऐसे प्रश्न करने का मकसद था कि दुनिया भर में एक संदेश जाए कि अहिंसा का यह पुजारी अमेरिका के इस कृत्य की किन शब्दों में भर्त्सना करता है। लोगों को आशा थी कि कि गांधी अगर ऐसा कुछ कहेंगे तो दुनिया में हिंसा के खिलाफ एक जागरूकता तो पैदा भी होगी अमेरिका में भी लोग हिंसक कृत्यों के खिलाफ एक मानसिकता बनेगी। पर गांधी ने इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा कि वे इस जीवन में कभी अमेरिका नहीं जाना चाहेंगे। यह बात उन्होंने किस सख्त लहजे में कही इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अमेरिकी हुक्मरानों के साथ अमेरिकियों के लिए भी यह कहा कि ये पैसे को भगवान की तरह पूजने वाले लोग हैं।
लिहाजा, ऐसे देश में जाने और वहां के लोगों से संवाद करने का वे कभी सोचते भी नहीं है। अपनी इस टिप्पणी के साथ गांधी यह भी जोड़ते हैं कि शायद अमेरिका को लेकर उनकी राय और भावनाओं को दुनिया अभी नहीं समझे। शायद गांधी ने आज के उस दौर की कल्पना तभी कर ली थी जब विकास और आधुनिकता की सारी समझ अमेरिकी रंग में रंगी दिखती है। आज अमेरिका पढ़ाई से लेकर नौकरी और मौज-मस्ती के लिए एक फाइनल डेस्टिनेशन की तरहभारत समेत दुनिया के और मुल्कों में देखा जा रहा है। गांधी की बात अमेरिका को लेकर हमें अपनी धारणा बनाने से भले न रोक पाए, पर सचेत तो वह करता ही है कि हमारी हिमायत जिस तरफ झुकी है, वह देश और उससे जुड़ी सोच क्या कल्याणकारी है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. दूरदृष्टि इसी को कहते हैं और आज जो हो रहा है कैसे हमारे युवा के दिमाग का दोहन हो रहा है ये किसी से छुपा नहीं है।

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