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रविवार, 20 जनवरी 2013

मीडिया से डरता है ड्रैगन


ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब चीन खुली नसीहत दे रहा था कि आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में उसके विकास के डग भारत से काफी आगे हैं। एक सरकारी चीनी अखबार ने ये बातें नई दिल्ली में गैंगरेप की घटना के संदर्भ में कही थी। चीन की इस समझ पर सोशल मीडिया में इतना बवाल मचा कि वहां की सरकार को ई-विचार स्रोतों पर ताला जड़ने पर मजबूर होना पड़ा। यह कोई नई या आपवादिक स्थिति नहीं है। चीन के विकास मॉडल की हम सराहना करें या नहीं, इतनी बात तो आज चीन के अंदर-बाहर दोनों जगह समझी जा रही है कि चीन आज कहीं न कहीं उसी मुहाने पर खड़ा है, जहां दो दशक पहले सोवियत संघ खड़ा था। यह चीन और सोवियत संघ की तुलना नहीं है, बल्कि इस साम्य को रेखांकित भर करना है कि देश में लोकतांत्रिक सरोकारों को लंबे समय तक कुचलते रहने से स्थिति कैसे विस्फोटक हो जाती है।
चीन में नए नेतृत्व से जो उम्मीद थी, वह बहुत जल्द हताशा में बदलती दिख रही है। सीपीसी के नए महासचिव जिनपिंग ने इस चिंता को जरूर कबूला है कि देश में जहां भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हुई हैं, वहीं अमीर-गरीब के बीच की खाई खतरनाक रूप से बढ़ गई है। सत्तारूढ़ चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी को लेकर भी उन्होंने माना कि संगठन और कार्यकर्ता जनता से काफी कट गए हैं। बावजूद इस कबूलनामे के लगता नहीं कि चीन में सरकारी स्तर पर कोई आत्ममंथन या बदलाव की प्रक्रिया चल रही है। वहां के एक साप्ताहिक अखबार ने जब सरकारी नियंत्रण का विरोध किया तो  सत्तारूढ़ सीपीसी की तरफ से बयान आया, 'पार्टी का चीन के मीडिया पर संपूर्ण नियंत्रण है। यह बुनियादी सिद्धांत अपनी जगह अटल है।'
मीडिया पर सरकारी सेंसरशिप के खिलाफ न सिर्फ चीन में पत्रकार लामबंद हैं बल्कि उनके इस विरोध को दुनिया भर में समर्थन भी मिल रहा है। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड द्वारा चीनी और चीन में काम करने वाले विदेशी पत्रकारों की स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करने से तो वहां की सरकार और तिलमिला गई है। उसने ऐसे किसी बाहरी समर्थन या अभियान को देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करा दिया है।
साफ है कि चीन में पार्टी विचार और अनुशासन के नाम पर दमनात्मक नीतियां जारी हैं। ग्लोबल दौर में लोकतांत्रिक सरोकारों की जमीन को जिस तरह उर्वर बना दिया है, उसमें ऐसी दमनात्मक व्यवस्था बदलाव की आंधी से बहुत लंबे समय तक महफूज नहीं रह सकती। यह चेतावनी अपनी सरकार को चीन के 73 चोटी के विद्वानों ने हाल में ही दी है। बावजूद इसके स्थिति नहीं सुधरी तो 1989 के थ्यानमन विद्रोह जैसा दृश्य चीन में कभी भी प्रकट हो सकती है।  

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