सचिन तेंदुलकर को लेकर एक बड़ी दिलचस्प स्थिति है। उन्हें क्रिकेट का भगवान पहले माना गया, भारत रत्न का सम्मान उन्हें बाद में मिला। यही नहीं, भारत रत्न दिए जाने की घोषणा होने और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने से पहले उन्हें राज्यसभा का सांसद मनोनीत किया गया। आज सचिन एक साथ क्रिकेट के भगवान, भारत रत्न और माननीय सांसद हैं।
लिटिल चैंपियन का यह परिचय एक ऐसा विशाल आभामंडल रचता है जिसके आगे देश के तमाम दूसरे क्षेत्रों की प्रतिभाओं की चमक फीकी मालूम पड़ती है। चर्चा निकली है तो यह भी ध्यान दिलाना जरूरी है कि इस दौरान आरटीआई के जरिए हुए एक खुलासे में यह जानकारी सामने आई कि भारत रत्न के लिए खेल मंत्रालय ने ध्यानचंद का नाम अग्रसारित किया था लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसमें अपने स्तर से हस्तक्षेप किया और सचिन तेंदुलकर का नाम फाइनल कर दिया।
गौरतलब है कि सचिन पहले ऐसे शख्स हैं, जिन्हेें खेल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए यह सम्मान दिया गया है। इसके लिए सरकार को सम्मान की अर्हता तय करने वाले प्रवधानों को संशोधित करना पड़ा। पूरे मामले की तफ्सील सामने आने पर खेल की दुनिया के अलावा सड़कों पर यह सवाल उठाया गया कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को नजरंदाज कर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न के लिए क्यों चुना गया।
बहरहाल, इस विवाद में और जाने की बजाय बात अकेले सचिन तेंदुलकर की। उनका जिस तरह का आचरण और अब भी वे जिस तरह से अपनी प्राथमिकताएं तय कर रहे हैं, उससे क्या वह देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान और राज्यसभा सदस्यता पाने की अपनी काबिलियत को सही साबित कर पा रहे हैं। राज्यसभा के लिए चुने जाने के मौके पर सचिन ने कहा था कि फिलहाल तो संसद के लिए बहुत समय नहीं निकाल पाएंगे क्योंकि क्रिकेट में उनका बहुत समय चला जाता है। पर उनके संन्यास की घोषणा के बाद लोगों को लगा कि वे अब राज्यसभा में अपनी सक्रिय मौजूदगी दिखाएंगे। इसी बीच उन्हें भारत रत्न के सम्मान से भी विधिवत नवाजा गया।
पर ऐसा कुछ देखने में आया नहीं। संसद का सत्र अभी चल रहा है। उच्च सदन की प्रस्तावित कार्यवाही में कई महत्वपूर्ण विषय हैं, जिन पर विचार होने हैं। पूरे देश की आंखें इन पर लगी हैं। यह अलग बात है कि विभिन्न दलों के सांसदों के विरोध के कारण संसद की कार्यवाही अच्छी तरह से चल नहीं रही है। पर सचिन इस बीच जहां और जो करते दिखे, वह उनकी शख्सियत से जुड़े तमाम सम्मानों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। दिलचस्प है कि सचिन को इस दौरान ग्रेटर नोएडा के ऑटो एक्सपो में महंगी बीएमडल्यू कार का नया वर्जन लांच करते देखा गया।
सवाल है कि एक व्यक्ति जो भारत रत्न जैसे शीर्ष नागरिक सम्मान से सम्मानित और राज्यसभा सांसद है, उसे प्रोडक्ट लांचिंग या एंडोर्समेंट जैसे काम में शरीक होना चाहिए या नहीं। तकनीकी रूप से भले इसमें कुछ गलत न हो पर यह उस महान मूल्य और परंपरा के खिलाफ है, जिसका अब तक देश में एक तरह से निर्वहन होता रहा है।
इस बात से इनकार नहीं है कि भारत रत्न सम्मान देने में कई बार राजनीतिक पसंद-नापसंद का ध्यान रखा गया है। इसके बावजूद यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वालों में हरेक का कद कम से कम इतना ऊंचा तो जरूर रहा है कि वे देश केे सामने एक आदर्श के रूप में नजर आएं। इस फेहरिस्त में महान दार्शनिक सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेेल, जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे, पंडित रविशंकर और उस्ताद विस्मिल्ला खां तक तमाम ऐसी विभूतियों के नाम शामिल हैं, जिनका कृतित्व और व्यक्तित्व काफी बड़ा रहा। दूसरी तरफ उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन के आचरण में इस मूल्य को बनाए रखा कि उनके किसी किए पर कोई विवाद या सवाल नहीं उठे।
सचिन तेंदुलकर को खुद को सौभाग्यशाली मानना चाहिए कि उन्हें यह सम्मान तब दिया गया, जब वे आयु और शरीर से काफी समर्थ हैं, ऊर्जावान हैं, नहीं तो देश की कई विभूतियों को तो जीते-जी यह सम्मान मिला भी नहीं। वैसे मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजे जाने की परंपरा एक अलग विवाद को भी जन्म देती है। पर यह कहीं न कहीं यह भी दिखाता है कि कई लोगों के पूरे जीवन को देखने के बाद सरकार इस नतीजे पर पहुंची कि उन्हें भारत रत्न का सम्मान दिया जाना चाहिए। विनोबा और जेपी सहित ऐसे कई नाम हैं।
ग्रेटर नोएडा के ऑटो एक्सपो में सचिन तेंदुलकर जब राज्यसभा की बैठक को छोड़कर बीएमडब्ल्यू कार के नए वर्जन को अनावृत कर रहेे थेे तो उनकी हैसियत एक मॉडल या सेल्समैन से ज्यादा नजर नहीं आ रही थी। यह भारत रत्न का अपमान है कि इससे सम्मानित एक व्यक्ति महज कुछ रुपयों के लिए सार्वजनिक रूप से इस तरह पेश आए।
सचिन ने अपने जीवन में आमतौर पर ज्यादा कुछ सार्वजनिक रूप से कहा नहीं है। जब कभी भी उन्होंने ऐसा कुछ कहा है तो वे काफी संयमित और विवेकशील दिखे हैं। उन्होंने अपना देशप्रेम खेल के मैदान पर तो एकाधिक बार जाहिर किया है। मीडिया के सामने भी उन्होंने बार-बार यह कबूला है कि उनके लिए सबसे सम्मानजनक और संतोषजनक यही रहा कि उन्हें देश के लिए खेलने का मौका मिला और देशवासियों ने उनके खेल को इतना सराहा। अब जबकि सचिन एक खिलाड़ी से भी आगे देश के रत्न मान लिए गए हैं तो उन्हें भरसक इस बात का खयाल रखना पड़ेगा कि वे क्या करें और क्या नहीं।
भारत एक बहुत बड़ा देश है। यहां आज भी तमाम ऐसी समस्याएं और चुनौतियां हैं जो हमें एक खुशहाल और विकसित देश बनने से रोकती हैं। देश के नवनिर्माण में युवकों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है। सचिन युवाओं के रोल मॉडल रहे हैं। वे युवाओं को राजनीतिक भले न सही पर शिक्षा और खेल के क्षेत्र में आगे लाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। उनकी किसी पहल का न सिर्फ असर होगा बल्कि वह खासा कारगर भी साबित होगा। देशहित में कई मौकों पर उन्होंने कई ऐसे अभियानों में हिस्सा लिया भी है, जिससे एक स्वस्थ और खुशहाल भारत का निर्माण हो।
हम जीवन में लंबे समय तक पैसा, पद और प्रतिष्ठा के लिए तरसते हैं, इसके लिए कोशिश करते हैं पर ये फिर भी हमें हासिल नहीं होते। कर्म और सौभाग्य का मेल हर बार हो ही, यह जरूरी नहीं पर सचिन के जीवन में यह मेल है। यह उनके लिए गौरव की भी बात है और संतोष की भी। उन्हें इस गौरव और संतोष को मान देना चाहिए और कुछ भी ऐसा करने से बचना चाहिए जो उनके लिए अशोभनीय हो।
लिटिल चैंपियन का यह परिचय एक ऐसा विशाल आभामंडल रचता है जिसके आगे देश के तमाम दूसरे क्षेत्रों की प्रतिभाओं की चमक फीकी मालूम पड़ती है। चर्चा निकली है तो यह भी ध्यान दिलाना जरूरी है कि इस दौरान आरटीआई के जरिए हुए एक खुलासे में यह जानकारी सामने आई कि भारत रत्न के लिए खेल मंत्रालय ने ध्यानचंद का नाम अग्रसारित किया था लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसमें अपने स्तर से हस्तक्षेप किया और सचिन तेंदुलकर का नाम फाइनल कर दिया।
गौरतलब है कि सचिन पहले ऐसे शख्स हैं, जिन्हेें खेल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए यह सम्मान दिया गया है। इसके लिए सरकार को सम्मान की अर्हता तय करने वाले प्रवधानों को संशोधित करना पड़ा। पूरे मामले की तफ्सील सामने आने पर खेल की दुनिया के अलावा सड़कों पर यह सवाल उठाया गया कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को नजरंदाज कर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न के लिए क्यों चुना गया।
बहरहाल, इस विवाद में और जाने की बजाय बात अकेले सचिन तेंदुलकर की। उनका जिस तरह का आचरण और अब भी वे जिस तरह से अपनी प्राथमिकताएं तय कर रहे हैं, उससे क्या वह देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान और राज्यसभा सदस्यता पाने की अपनी काबिलियत को सही साबित कर पा रहे हैं। राज्यसभा के लिए चुने जाने के मौके पर सचिन ने कहा था कि फिलहाल तो संसद के लिए बहुत समय नहीं निकाल पाएंगे क्योंकि क्रिकेट में उनका बहुत समय चला जाता है। पर उनके संन्यास की घोषणा के बाद लोगों को लगा कि वे अब राज्यसभा में अपनी सक्रिय मौजूदगी दिखाएंगे। इसी बीच उन्हें भारत रत्न के सम्मान से भी विधिवत नवाजा गया।
पर ऐसा कुछ देखने में आया नहीं। संसद का सत्र अभी चल रहा है। उच्च सदन की प्रस्तावित कार्यवाही में कई महत्वपूर्ण विषय हैं, जिन पर विचार होने हैं। पूरे देश की आंखें इन पर लगी हैं। यह अलग बात है कि विभिन्न दलों के सांसदों के विरोध के कारण संसद की कार्यवाही अच्छी तरह से चल नहीं रही है। पर सचिन इस बीच जहां और जो करते दिखे, वह उनकी शख्सियत से जुड़े तमाम सम्मानों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। दिलचस्प है कि सचिन को इस दौरान ग्रेटर नोएडा के ऑटो एक्सपो में महंगी बीएमडल्यू कार का नया वर्जन लांच करते देखा गया।
सवाल है कि एक व्यक्ति जो भारत रत्न जैसे शीर्ष नागरिक सम्मान से सम्मानित और राज्यसभा सांसद है, उसे प्रोडक्ट लांचिंग या एंडोर्समेंट जैसे काम में शरीक होना चाहिए या नहीं। तकनीकी रूप से भले इसमें कुछ गलत न हो पर यह उस महान मूल्य और परंपरा के खिलाफ है, जिसका अब तक देश में एक तरह से निर्वहन होता रहा है।
इस बात से इनकार नहीं है कि भारत रत्न सम्मान देने में कई बार राजनीतिक पसंद-नापसंद का ध्यान रखा गया है। इसके बावजूद यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वालों में हरेक का कद कम से कम इतना ऊंचा तो जरूर रहा है कि वे देश केे सामने एक आदर्श के रूप में नजर आएं। इस फेहरिस्त में महान दार्शनिक सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेेल, जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे, पंडित रविशंकर और उस्ताद विस्मिल्ला खां तक तमाम ऐसी विभूतियों के नाम शामिल हैं, जिनका कृतित्व और व्यक्तित्व काफी बड़ा रहा। दूसरी तरफ उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन के आचरण में इस मूल्य को बनाए रखा कि उनके किसी किए पर कोई विवाद या सवाल नहीं उठे।
सचिन तेंदुलकर को खुद को सौभाग्यशाली मानना चाहिए कि उन्हें यह सम्मान तब दिया गया, जब वे आयु और शरीर से काफी समर्थ हैं, ऊर्जावान हैं, नहीं तो देश की कई विभूतियों को तो जीते-जी यह सम्मान मिला भी नहीं। वैसे मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजे जाने की परंपरा एक अलग विवाद को भी जन्म देती है। पर यह कहीं न कहीं यह भी दिखाता है कि कई लोगों के पूरे जीवन को देखने के बाद सरकार इस नतीजे पर पहुंची कि उन्हें भारत रत्न का सम्मान दिया जाना चाहिए। विनोबा और जेपी सहित ऐसे कई नाम हैं।
ग्रेटर नोएडा के ऑटो एक्सपो में सचिन तेंदुलकर जब राज्यसभा की बैठक को छोड़कर बीएमडब्ल्यू कार के नए वर्जन को अनावृत कर रहेे थेे तो उनकी हैसियत एक मॉडल या सेल्समैन से ज्यादा नजर नहीं आ रही थी। यह भारत रत्न का अपमान है कि इससे सम्मानित एक व्यक्ति महज कुछ रुपयों के लिए सार्वजनिक रूप से इस तरह पेश आए।
सचिन ने अपने जीवन में आमतौर पर ज्यादा कुछ सार्वजनिक रूप से कहा नहीं है। जब कभी भी उन्होंने ऐसा कुछ कहा है तो वे काफी संयमित और विवेकशील दिखे हैं। उन्होंने अपना देशप्रेम खेल के मैदान पर तो एकाधिक बार जाहिर किया है। मीडिया के सामने भी उन्होंने बार-बार यह कबूला है कि उनके लिए सबसे सम्मानजनक और संतोषजनक यही रहा कि उन्हें देश के लिए खेलने का मौका मिला और देशवासियों ने उनके खेल को इतना सराहा। अब जबकि सचिन एक खिलाड़ी से भी आगे देश के रत्न मान लिए गए हैं तो उन्हें भरसक इस बात का खयाल रखना पड़ेगा कि वे क्या करें और क्या नहीं।
भारत एक बहुत बड़ा देश है। यहां आज भी तमाम ऐसी समस्याएं और चुनौतियां हैं जो हमें एक खुशहाल और विकसित देश बनने से रोकती हैं। देश के नवनिर्माण में युवकों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है। सचिन युवाओं के रोल मॉडल रहे हैं। वे युवाओं को राजनीतिक भले न सही पर शिक्षा और खेल के क्षेत्र में आगे लाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। उनकी किसी पहल का न सिर्फ असर होगा बल्कि वह खासा कारगर भी साबित होगा। देशहित में कई मौकों पर उन्होंने कई ऐसे अभियानों में हिस्सा लिया भी है, जिससे एक स्वस्थ और खुशहाल भारत का निर्माण हो।
हम जीवन में लंबे समय तक पैसा, पद और प्रतिष्ठा के लिए तरसते हैं, इसके लिए कोशिश करते हैं पर ये फिर भी हमें हासिल नहीं होते। कर्म और सौभाग्य का मेल हर बार हो ही, यह जरूरी नहीं पर सचिन के जीवन में यह मेल है। यह उनके लिए गौरव की भी बात है और संतोष की भी। उन्हें इस गौरव और संतोष को मान देना चाहिए और कुछ भी ऐसा करने से बचना चाहिए जो उनके लिए अशोभनीय हो।
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