भारत बाजार के लिए भले पिछले दो दशकों में ज्यादा उदार हुआ हो पर विचार के क्षेत्र में उसकी उदारता काफी पहले से रही है। भारतीय चिंतन का चरित्र समन्वयवादी इसलिए है क्योंकि नए विचारों का हमने हमेशा खुले हाथों से स्वागत किया है। बहरहाल, ये बातें यहां इसलिए क्योंकि हम चर्चा करने जा रहे हैं एक ऐसी लेखिका की जो भारतीय नहीं हैंऔर न ही भारतीय जीवन और समाज को लेकर उन्होंने कोई उल्लेखनीय कार्य किया है। पर उन्हें पढ़ने-सुनने के लिए यहां के प्रबुद्ध लोगों में गजब का आकर्षण है।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं ब्रितानी लेखिका और पत्रकार शिरीन एल फेकी की। शिरीन का अरब की महिलओं को लेकर अध्ययन काफी चर्चित रहा है। उनकी किताब है 'सेक्स एंड दी सिटेडेल : इंटीमेट लाइफ इन ए चेंजिग अरब वर्ल्ड’। इसमें उन्होंने अरब की महिलाओं के जीवन के अंतरंग अनुभवों को बेबाकी से सामने रखा है। दिलचस्प है कि महिलाओं को लेकर अरब का समाज आज भी बहुत खुला नहीं है। वहां पर्दा प्रथा जैसी तमाम मध्यकालीन परंपराएं और मान्यताएं आज भी प्रचलन में हैं, जो वहां की महिलाओं को बाहरी दुनिया में खुलकर सांस लेने से रोकती हैं।
शिरीन पिछले दिनों जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत करने आई थीं। वहां एक संवाद सत्र में उन्होंने कहा कि लोगों को उनका काम इसलिए आकर्षक लगता है क्योंकि इसका केंद्रीय विषय सेक्स है। पर यह उनके काम को महत्वहीन करने वाला नजरिया है। इस तरह के नजरिए के कारण महिलाओं के जीवन से जुड़ी कई समस्याओं और उनके उत्पीड़न के मुद्दों को सही तरीके से समझने की कोशिश अनावश्यक रूप से प्रभावित होती है।
फेकी ने कहा कि सेक्स पर बातें करते हुए मैंने अरब दुनिया में पांच वर्ष बिताए हैं। कई लोग यह सोच सकते हैं कि यह दुनिया का बेहतरीन काम है। पर ऐसा नहीं है क्योंकि वे अरब की महिलाओं की जिंदगी के उन पन्नों को खोलना चाहती थीं, जिसके बारे में आमतौर पर बात नहीं होती है।
अपने बारे में फेकी बताती हैं कि वे ब्रितानी जरूर हैं पर उनकी परवरिश वहां नहीं हुई। उनके पिता वेल्स के और मां मिस्त्र की हैं। मां-पिता के कनाडा चले जाने के कारण उनकी पढ़ाई भी बाहर ही हुई। सितंबर 2००1 में अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकवादी हमला होने तक उन्होंने अरब दुनिया के साथ कभी कोई जुड़ाव महसूस नहीं किया था। पर इसके बाद इस्लामी मुल्कों, खासतौर पर अरब की महिलाओं के जीवन को लेकर उनके मन में कई तरह की जिज्ञासा और सवाल पैदा हुए।
फेकी को जब 'द इकोनामिस्ट’ अखबार के लिए स्वास्थ्य संवाददाता के रूप में काम करने का मौका मिला तो उन्होंने एचआईवी पर एक महत्वपूर्ण स्टोरी की। इसी क्रम में पुरातनपंथी मूल्यों वाले अरब मुल्कों की महिलाओं के साथ उन्हें बातचीत का मौका मिला।
फेकी का मानना है कि समाज का व्यवहार शयनकक्ष के बंद दरवाजे के पीछे जो कुछ घटित होता है, उससे गहरे तौर पर जुड़ा होता है। पर लोग इश बात को गहराई से नहीं समझते हैं।
अरब की महिलाएं इस लिहाज से बाकी दुनिया से कतई अलग नहीं हैं कि प्यार और संवेदना को लेकर उनका दिलो दिमाग किसी और तरह की बनावट का है। बल्कि सच तो यह है कि यहां की महिलाओं की जीवन के कुछ कोमल अनुभवों को लेकर आपबीती इतनी खुरदरी और उत्पीड़न भरी है कि उसके बारे में जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
फेकी कहती हैं कि अरब मुल्कों की महिलाओं के बारे में आमतौर पर जिस तरह की बातें की जाती हैं, वह सचाई से निहायत परे हैं। अगर आज आधी दुनिया लैंगिक समानता और देह पर अधिकार जैसे महिलावादी तकाजों पर मुट्ठी बांध रही हैं तो उसमें अरब की महिलाओं का संघर्ष अलग से रेखांकित होना चाहिए। फेकी भी इस तकाजे को ही अपना लेखकीय मिशन मानती हैं।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं ब्रितानी लेखिका और पत्रकार शिरीन एल फेकी की। शिरीन का अरब की महिलओं को लेकर अध्ययन काफी चर्चित रहा है। उनकी किताब है 'सेक्स एंड दी सिटेडेल : इंटीमेट लाइफ इन ए चेंजिग अरब वर्ल्ड’। इसमें उन्होंने अरब की महिलाओं के जीवन के अंतरंग अनुभवों को बेबाकी से सामने रखा है। दिलचस्प है कि महिलाओं को लेकर अरब का समाज आज भी बहुत खुला नहीं है। वहां पर्दा प्रथा जैसी तमाम मध्यकालीन परंपराएं और मान्यताएं आज भी प्रचलन में हैं, जो वहां की महिलाओं को बाहरी दुनिया में खुलकर सांस लेने से रोकती हैं।
शिरीन पिछले दिनों जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शिरकत करने आई थीं। वहां एक संवाद सत्र में उन्होंने कहा कि लोगों को उनका काम इसलिए आकर्षक लगता है क्योंकि इसका केंद्रीय विषय सेक्स है। पर यह उनके काम को महत्वहीन करने वाला नजरिया है। इस तरह के नजरिए के कारण महिलाओं के जीवन से जुड़ी कई समस्याओं और उनके उत्पीड़न के मुद्दों को सही तरीके से समझने की कोशिश अनावश्यक रूप से प्रभावित होती है।
फेकी ने कहा कि सेक्स पर बातें करते हुए मैंने अरब दुनिया में पांच वर्ष बिताए हैं। कई लोग यह सोच सकते हैं कि यह दुनिया का बेहतरीन काम है। पर ऐसा नहीं है क्योंकि वे अरब की महिलाओं की जिंदगी के उन पन्नों को खोलना चाहती थीं, जिसके बारे में आमतौर पर बात नहीं होती है।
अपने बारे में फेकी बताती हैं कि वे ब्रितानी जरूर हैं पर उनकी परवरिश वहां नहीं हुई। उनके पिता वेल्स के और मां मिस्त्र की हैं। मां-पिता के कनाडा चले जाने के कारण उनकी पढ़ाई भी बाहर ही हुई। सितंबर 2००1 में अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकवादी हमला होने तक उन्होंने अरब दुनिया के साथ कभी कोई जुड़ाव महसूस नहीं किया था। पर इसके बाद इस्लामी मुल्कों, खासतौर पर अरब की महिलाओं के जीवन को लेकर उनके मन में कई तरह की जिज्ञासा और सवाल पैदा हुए।
फेकी को जब 'द इकोनामिस्ट’ अखबार के लिए स्वास्थ्य संवाददाता के रूप में काम करने का मौका मिला तो उन्होंने एचआईवी पर एक महत्वपूर्ण स्टोरी की। इसी क्रम में पुरातनपंथी मूल्यों वाले अरब मुल्कों की महिलाओं के साथ उन्हें बातचीत का मौका मिला।
फेकी का मानना है कि समाज का व्यवहार शयनकक्ष के बंद दरवाजे के पीछे जो कुछ घटित होता है, उससे गहरे तौर पर जुड़ा होता है। पर लोग इश बात को गहराई से नहीं समझते हैं।
अरब की महिलाएं इस लिहाज से बाकी दुनिया से कतई अलग नहीं हैं कि प्यार और संवेदना को लेकर उनका दिलो दिमाग किसी और तरह की बनावट का है। बल्कि सच तो यह है कि यहां की महिलाओं की जीवन के कुछ कोमल अनुभवों को लेकर आपबीती इतनी खुरदरी और उत्पीड़न भरी है कि उसके बारे में जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
फेकी कहती हैं कि अरब मुल्कों की महिलाओं के बारे में आमतौर पर जिस तरह की बातें की जाती हैं, वह सचाई से निहायत परे हैं। अगर आज आधी दुनिया लैंगिक समानता और देह पर अधिकार जैसे महिलावादी तकाजों पर मुट्ठी बांध रही हैं तो उसमें अरब की महिलाओं का संघर्ष अलग से रेखांकित होना चाहिए। फेकी भी इस तकाजे को ही अपना लेखकीय मिशन मानती हैं।
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