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बुधवार, 15 जनवरी 2014

कई विधाओं की अकेली मल्लिका

मल्लिका साराभाई। इस नाम को लोग अलग-अलग वजहों से जानते हैं। जानने वालों के बीच उनकी छवि भी एकाधिक है। खुद मल्लिका भी अपनी शख्सियत के किसी एक रंग को नहीं बल्कि उन तमाम रंगों को पसंद करती हैं, जिनमें उनकी रुचि और इच्छा का इंद्रधनुषी मेल हो। यही वजह है कि कुचिपुड़ी और भरतनाट्यम की कुशल नृत्यांगना के अलावा मल्लिका की ख्याति नाट्य कलाकार, अभिनेत्री, लेखिका, समाज सेविका तथा महिला असुरक्षा और सांप्रदायिकता जैसे ज्वलंत मुद्दों पर मुखरता के साथ सामने आने वाली एक प्रभावशाली महिला के रूप में भी है। मल्लिका अपनी इन तमाम दिलचस्पियों और खुबियों को एक शब्द में यह कहते हुए बयां करती हैं कि वे कुल मिलाकर एक कम्यूनिकेटर हैं। चूंकि वह खुद को एक बेहतर कम्यूनिकेटर के रूप में लोगों के सामने लाना चाहती हैं, इसलिए वह तमाम विधाओं में हाथ आजमाती हैं।
मल्लिका इन दिनों चर्चा में इसलिए हैं कि वे आम आदमी पार्टी में शामिल हो रही हैं। वह कह रही हैं कि देश में अब तक की राजनीतिक व्यवस्था और उसमें शामिल दल फेल साबित हुए हैं, लोगों की उम्मीद पर खरा उतरने में। यह जनता की उम्मीदों के साथ एक धोखे की तरह है। मल्लिका इससे पहले भी भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता विरोध के मुद्दे पर काफी मुखरता से पेश आई हैं। गुजरात में नरेंद्र मोदी सरकार से इसलिए उनका छत्तीस का संबंध है क्योंकि वह गुजरात दंगों को लेकर सरकार और प्रशासन की भूमिका के बारे में लगातार सवाल उठाती रही हैं।
मल्लिका की शख्सियत में जिस तरह की निर्भीकता और जीवंतता है, उसमें उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का भी काफी योगदान है। वह प्रसिद्ध नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई और ख्यातिलब्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई की बेटी हैं। नौ मई 1954 को को अहमदाबाद में जन्मी मल्लिका को घर में ही काफी सुसंस्कृत और सुशिक्षित माहौल मिला। आगे के जीवन में मल्लिका के जीवन में इसका असर देखने में भी आया। उन्हें नजदीक से जानने वाले भी कहते हैं कि उनके जीवन की कई छटाएं हैं। कभी तो वह अपनी बातचीत और पहनावे से एक अति आधुनिक महिला लगती हैं तो कभी परंपरा और संस्कृति के प्रति उनका प्रेम देखकर दंग रह जाना पड़ता है। एक समृद्ध और जानेमाने परिवार से ताल्लुक रखने वाले के बावजूद आमजन की चिंताओं से भी वह लगातार जुड़ी रही हैं। यही कारण है कि उनकी गिनती एक समर्पित समाज सेविका के रूप में भी होती है।
नृत्य कला और अभिनय के क्षेत्र में तो उनके दखल का लोगा सब मानते हैं। उन्होंने दुनिया के कई देशों में अपनी इस निपुणता से लोगों की सराहना बटोरी है। इसू तरह समानांतर सिनेमा में उनके योगदान को सभी रेखांकित करते हैं। कहकशां, कथा, मुट्ठी भर चावल, हिमालय से ऊंचा और सोनल उनकी यादगार फिल्में हैं। रंगमंच पर उनका अभिनय काफी सम्मोहन भरा रहा है। 1989 में जब वह सोलो परफार्मेंस के साथ 'शक्ति’ नाटक लेकर लोगों के सामने आईं तो उनकी प्रशंसा दर्शकों ने तो की ही, आलोचकों की नजर में भी खरी उतरीं। उन्होंने हर्ष मंदर की अनहर्ड वॉयसेज का नाट्य रुपांतरण 'अनसुनी’ नाम से किया। इसी तरह ब्रेख्त के एक नाटक का भी उन्होंने भारतीय संदर्भ में रुपांतरण किया।
बात करें राजनीति की तो इस क्षेत्र में मल्लिका का नाम तब अचानक पूरे देश में चर्चा में आ गया जब उन्होंने 2००9 में भाजपा के दिग्गज लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ गांधीनगर से चुनाव लड़ने का फैसला किया। विभिन्न क्षेत्रों में अपने अवदानों के लिए भारत सराकर की तरफ से पद्म भूषण सम्मान से नवाजी जा चुकीं मल्लिका साराभाई कई बार विवादों में भी फंसी है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कबूतरबाजी का मामला। हालांकि मल्लिका का कहना है कि यह सब उनकी वैचारिक प्रतिब्धदता और मुखरता के कारण उनके खिलाफ एक साजिश भर है।
बहरहाल, मल्लिका साराभाई आज भी देश की उन गिनी चुनी शख्सियतों में शामिल हैं, जिनकी उपस्थिति को कहीं भी गरिमामय माना जाता है और जिनके विचार और काम के पीछे एक सार्थक तर्क होता है।

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