पद और सत्ता के जुनून के दौर में त्याग का साहस दिखाना कोई मामूली बात नहीं है। सिंधुरत्न पनडुब्बी हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए जिस तरह एडमिरल देवेंद्र कुमार जोशी ने नौसेना प्रमुख के पद से इस्तीफा दिया, उसकी आज हर तरफ चर्चा हो रही है। कुछ लोग इसे भ्रष्ट राजनीति को आईना दिखाने वाली नजीर बता रहे हैं तो कुछ भारतीय सेना की ईमानदारी के इतिहास का नया मीलस्तंभ।
आलम तो यह है कि एडमिरल जोशी ने जिस तरह बिना देर लगाए पनडुब्बी हादसे के मामले की नैतिक जवाबदेही लेते हुए तत्काल पद छोड़ने का फैसला किया, उससे मौजूदा रक्षामंत्री एके एंटनी पर भी दबाव बढ़ गया है कि वे भी अपना पद छोड़ें। खैर यह तो हो गई राजनीति की बात। ऐसा नहीं था कि इस्तीफा देने का कोई उन पर दबाव था या फिर वे अपने पद पर बने रहने के लिए किसी दूसरे रास्ते या बहाने का सहारा नहीं ले सकते थे। पर शायद भारतीय नौसेना का यह नायक कुछ और ही मिट्टी का बना था। तभी तो ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति अपनी शपथ को उन्होंने किसी दुविधा में नहीं पड़ने दिया।
बात करें एडमिरल जोशी की तो उनके जीवन का अब तक का सफरनामा खासा बेदाग रहा है। अपनी बहादुरी और आचरण से उन्होंने एक आदर्श फौजी की मिसाल कायम की है। इस बात का महत्व आज इस लिहाज से काफी बढ़ गया है क्योंकि सेना के कई शीर्ष अधिकारियों पर बीते कुछ सालों में पद के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे हैं।
एडमिरल डीके जोशी ने 31 अगस्त, 2०12 को भारत के 19वें नौसेना प्रमुख का पद ग्रहण किया था। पदभार ग्रहण करते समय अपने संबोधन में उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं गिनाते हुए कहा था, 'देश की समृद्धि के लिए नौसेना को समुद्रीय शक्ति बनने का लक्ष्य पूरा करना होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे सतर्क रहना होगा ताकि हमारी सुरक्षा तैयारियों में किसी तरह की ढील न रह जाए।’
उन्होंने आदमी और मशीनों के बेहतर तालमेल पर जोर देते हुए कहा था, 'सुरक्षा संबंधी उद्देश्यों को हासिल करने के लिए आदमी और मशीन के बीच तालमेल बहुत महत्वपूर्ण है।’ नौसेना की वेबसाइट के अनुसार एडमिरल जोशी पनडुब्बी-विरोधी युद्ध के विशेषज्ञ हैं।
अपनी करीब 4० साल की सेवा के दौरान उन्होंने विभिन्न तरह की स्टाफ, कमांड और निर्देशन की जिम्मेदारियों को संभाला। उन्होंने जो मुख्य जिम्मेदारियां निभाईं उनमें गाइडेड मिसाइल वाले युद्धपोत आईएनएस कुठार, गाइडेड मिसाइल विध्वंसक पोत रणवीर और विमानवाहक पोत आईएनएस विराट का नियंत्रण शामिल है। इस दौरान उन्हें नौसेना पदक, विशिष्ट सेवा पदक और युद्ध सेवा पदक से भी सम्मानित किया गया। बाद में जब उन्होंने पूर्वी बेड़े का नेतृत्व किया, जिसके लिए उन्हें अति विशिष्ट सेवा पदक (एवीएसएम) दिया गया।
एडमिरल जोशी नेवल वॉर कॉलेज, अमेरिका से स्नातक हैं। इसके अलावा उन्होंने कॉलेज ऑफ नेवल वार फेयर, मुंबई और दिल्ली के प्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस कॉलेज में भी अध्ययन किया है। उन्होंने 1996 से 1999 के बीच सिगापुर में भारतीय उच्चायोग में रक्षा सलाहकार के रूप में भी काम किया है।
4 जुलाई 1954 को अल्मोड़ा , उत्तराखंड में जन्मे एडमिरल जोशी की यह खास बात रही कि उनकी गिनती सेना के उन दक्ष अधिकारियों में होती रही जो तकनीकी तौर पर काफी जानकार हैं। वे प्रबंधकीय दक्षता वाले एक अच्छे टीम लीडर भी रहे। इस कारण उनके साथ करने वाले सैन्य अधिकारियों का उनके प्रति गहरा सम्मान रहा।
आलम तो यह है कि एडमिरल जोशी ने जिस तरह बिना देर लगाए पनडुब्बी हादसे के मामले की नैतिक जवाबदेही लेते हुए तत्काल पद छोड़ने का फैसला किया, उससे मौजूदा रक्षामंत्री एके एंटनी पर भी दबाव बढ़ गया है कि वे भी अपना पद छोड़ें। खैर यह तो हो गई राजनीति की बात। ऐसा नहीं था कि इस्तीफा देने का कोई उन पर दबाव था या फिर वे अपने पद पर बने रहने के लिए किसी दूसरे रास्ते या बहाने का सहारा नहीं ले सकते थे। पर शायद भारतीय नौसेना का यह नायक कुछ और ही मिट्टी का बना था। तभी तो ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति अपनी शपथ को उन्होंने किसी दुविधा में नहीं पड़ने दिया।
बात करें एडमिरल जोशी की तो उनके जीवन का अब तक का सफरनामा खासा बेदाग रहा है। अपनी बहादुरी और आचरण से उन्होंने एक आदर्श फौजी की मिसाल कायम की है। इस बात का महत्व आज इस लिहाज से काफी बढ़ गया है क्योंकि सेना के कई शीर्ष अधिकारियों पर बीते कुछ सालों में पद के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगे हैं।
एडमिरल डीके जोशी ने 31 अगस्त, 2०12 को भारत के 19वें नौसेना प्रमुख का पद ग्रहण किया था। पदभार ग्रहण करते समय अपने संबोधन में उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं गिनाते हुए कहा था, 'देश की समृद्धि के लिए नौसेना को समुद्रीय शक्ति बनने का लक्ष्य पूरा करना होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे सतर्क रहना होगा ताकि हमारी सुरक्षा तैयारियों में किसी तरह की ढील न रह जाए।’
उन्होंने आदमी और मशीनों के बेहतर तालमेल पर जोर देते हुए कहा था, 'सुरक्षा संबंधी उद्देश्यों को हासिल करने के लिए आदमी और मशीन के बीच तालमेल बहुत महत्वपूर्ण है।’ नौसेना की वेबसाइट के अनुसार एडमिरल जोशी पनडुब्बी-विरोधी युद्ध के विशेषज्ञ हैं।
अपनी करीब 4० साल की सेवा के दौरान उन्होंने विभिन्न तरह की स्टाफ, कमांड और निर्देशन की जिम्मेदारियों को संभाला। उन्होंने जो मुख्य जिम्मेदारियां निभाईं उनमें गाइडेड मिसाइल वाले युद्धपोत आईएनएस कुठार, गाइडेड मिसाइल विध्वंसक पोत रणवीर और विमानवाहक पोत आईएनएस विराट का नियंत्रण शामिल है। इस दौरान उन्हें नौसेना पदक, विशिष्ट सेवा पदक और युद्ध सेवा पदक से भी सम्मानित किया गया। बाद में जब उन्होंने पूर्वी बेड़े का नेतृत्व किया, जिसके लिए उन्हें अति विशिष्ट सेवा पदक (एवीएसएम) दिया गया।
एडमिरल जोशी नेवल वॉर कॉलेज, अमेरिका से स्नातक हैं। इसके अलावा उन्होंने कॉलेज ऑफ नेवल वार फेयर, मुंबई और दिल्ली के प्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस कॉलेज में भी अध्ययन किया है। उन्होंने 1996 से 1999 के बीच सिगापुर में भारतीय उच्चायोग में रक्षा सलाहकार के रूप में भी काम किया है।
4 जुलाई 1954 को अल्मोड़ा , उत्तराखंड में जन्मे एडमिरल जोशी की यह खास बात रही कि उनकी गिनती सेना के उन दक्ष अधिकारियों में होती रही जो तकनीकी तौर पर काफी जानकार हैं। वे प्रबंधकीय दक्षता वाले एक अच्छे टीम लीडर भी रहे। इस कारण उनके साथ करने वाले सैन्य अधिकारियों का उनके प्रति गहरा सम्मान रहा।
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