समाचार की दुनिया कब सूचना में रातोंरात बदल गई यह खबरिया तंत्र के पंडितों को भी पता पहीं लगा। नहीं तो बात-बात में ब्रोकिंग न्यूज चला देने वाले चैनल मास्टरों को कम से कम संभलने का एक मौका तो जरूर मिलता। बहरहाल अगर बात करें सूचना के दौर का आगाज की तो यह शुरुआत तकरीबन दो दशक पहले ही हो गया था। दिलचस्प है कि इस दौर की उठान अब भी थमी नहीं है। चौबीसों घंटे के टीवी चैनलों को जहां घरेलू होने का दर्जा मिल गया, वहीं मोबाइल फोनों से हमारे हाथ सूचना के औज़ार से लैश हो गए। इस सब के बीच अनसुनी रह गई तो वह 'आकाशवाणी' जिसने अपनी आवाज के जादू से हमारी कई पीढ़ियों को सम्मोहित किए रखा। यह आवाज जब एफएम के रूप में नई तकनीकी कुशलता से कानों तक पहुंची तो इसके रसियों का एक नया शहरी वर्ग पैदा हुआ।
दिलचस्प है कि आज चारों तरफ धूम टीवी चैनलों के साथ एफएम चैनलों की भी है, पर इस सबके पीछे निजी महारथ के आगे सरकारी कोशिशें मार खाती गईं। दूरदर्शन जहां आज किसी भी टीवी रिमोट का सबसे आखिरी बटन है, वहीं सरकारी एफएम रेडियो बस भूली-बिसरी याद जगाने वाला बहलाव भर। अब लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर थोड़े पेशेवर तरीके से सोचने और पहलकदमी के लिए तैयार हुई है। केंद्रीय कैबिनेट ने एक बड़े फैसले के तहत एफएम के तीसरे चरण के विस्तार को हरी झंडी दे दी है। इसके तहत 227 नए शहरों में निजी एफ रेडियो चैनल शुरू होंगे। और इसी एक साथ पूरा हो जाएगा देश के एक लाख से ज्यादा की आबादी वाले तमाम शहरों में एफएम रेडियो पहुंचाने का संकल्प। फिलहाल देश के महज 86 शहरों के के पास अपना एफएम रेडियो है। अकेले एफएम की बात करें तो सरकार का यह फैसला अब तक का सबसे बड़ा फैसला है क्योंकि इसके तहत न सिर्फ सबसे ज्यादा शहरों को एफएम सर्किट का हिस्सा बनाने का लक्ष्य पूरा होगा बल्कि फैसला यह भी लिया गया है कि निजी एफएम चैनलों को आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले समाचारों की छूट होगी। सरकारी कंटेंट के बाजार में सेलेबल बनाने की यह फैसला नीतिगत रूप से एक क्रांतिकारी कदम है।
अब तक सरकारी और निजी क्षेत्र इस तरह साथ मिलकर और पेशेवर साझेदारी के साथ बहुत कम क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। जाहिर है कि इस बड़े फैसले का असर भी बड़ा होगा क्योंकि रेडियो और सेलफोन इस मामले में तो जरूर टीवी चैनलों पर भारी पड़ते हैं कि इन्हें आप अपने साथ कहीं भी ले जा सकते हैं। लिहाजा, आगे देश की एक बड्री आबादी के पास ये सुविधा होगी कि वह जहां है, वहीं स्थानीय खबरों, बाजार गतिविधियों और रोजगार की सूचनाओं को पा सकेगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी अपने मंत्रालय की तरफ से इस बड़ी पहल के कारण खासी गदगद हैं। उन्होंने एफएम के तीसरे चरण के विस्तार की जो रूपरेखा देश के सामने रखी है, उसमें पूरी पारदर्शिता के निर्वाह का वचन दिया है। उम्मीद है कि 2जी और 3जी के विवाद के बीच सरकार की ओर से किए गए इस फैसले को निर्विवादित रहने का श्रेय तो मिलेगा ही, जनता भी सरकार के इस असरकारी फैसले से खुश होगी। वैसे जहां तक बात सूचना और प्रसारण मंत्रालय के कामकाज और उपलब्धियों की है तो दूरदर्शन को लेकर कोई दूरदर्शी फैसला लेना अब भी बाकी है। लंबा समय हो गया और इस दौरान कई सरकारें आई- गईं पर प्रसार भारती की स्वायत्तता का एक तरह से तदर्थ रूप ही अब तक चला आ रहा है।
नतीजतन निजी टीवी चैनलों ने जहां इस दौरान अपनी पूंजी और पैठ काफी बढ़ा ली हैं, वहीं सरकार का दूरदर्शन रोज-ब-रोज आम लोगों से दूर होता जा रहा है। पहले तो यह शिकायत थी कि यह सरकार के विज्ञापन एजेंसी की तरह काम कर रहा है, पर अब तो आलम यह है कि इसकी पहुंच का रकबा भी सिकुड़ता जा रहा है। एफएम के विस्तार के बाद सरकार के सुधार और विस्तार एजेंडे पर निश्चित रूप से दूरदर्शन को आना ही चाहिए। और अगर ऐसा नहीं हुआ तो कहना पड़ेगा कि आज भी हमारी सरकार दूरदर्शी नहीं है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें