बारहमासे का एक चक्र भी पूरा नहीं हुआ कि फसाने की दिलकशी फिर से न सिर्फ बहाल दिख रही है, बल्कि एक बार फिर अपने पूरे शबाब पर भी है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं लोकसभा की दर्शक दीर्घा में नजर आई, उस उपस्थिति की, जिसकी चर्चा कॉफी टेबल से लेकर फुटकर चौपालों तक है। बुधवार को देश के तमाम अखबारों ने ये खबर प्रमुखता से छापी कि शादी के बाद पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर के लोकसभा में पहले महत्वपूर्ण भाषण के दौरान उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर उनका हौसला बढ़ाने पहुंचीं। पति को हौसले और भरोसे का जो सिंदूरी समर्थन दर्शक दीर्घा में बैठकर सुनंदा पुष्कर जता रही थीं, उसकी अभिव्यक्ति इतनी खुली और खनकदार थी कि उसके आकर्षण पाश में लोकसभा तकरीबन घंटे भर तक अवगाहन करती रही।
भारतीय राजनीति और राजनेता अमेरिका और यूरोप से अलग हैं। हमारे यहां निजी प्रेम, साहर्चय और यहां तक कि दांपत्य तक को शालीन दोशाले के साथ ही पेश किया जाता है। बहुत गहरी छानबीन के बजाय एक विहंगम दृष्टि अगर गुजरे छह से ज्यादा दशकों के स्वतंत्र भारत की राजनीतिक यात्रा पर डालें तो अकेले राजनेता पंडित नेहरू दिखाई पड़ेंगे, जिनके स्वभाव और सलूक में यूरोपीय या अमेरिकी मन-मिजाज जब-तब झांकता था। इसके अलावा जो उदाहरण या प्रकरण गिनाए जा सकते हैं, उसमें प्रकट न होने का यत्नपूर्ण संकोच ही ज्यादा छलका है। दिलचस्प है कि उदारीकरण के तीस साला अनुभव के बाद संबंधों को लेकर खुलेपन का दायरा परिवार-समाज तक की दहलीज को लांघ रहा है, बावजूद इसके अगर सार्वजनिक जीवन की शुचिता कुछ संकोच और हिचक में ही बदहाल दिखती है तो इसे देश की बदली राजनीति की न बदलने वाली धज ही कहेंगे। पर अब यह धज समय सापेक्ष नहीं रही, नहीं तो दोशाले का इस्तेमाल शालीनता के लिए ही होता, मुंह ढांपने या छिपाने के लिए नहीं होता। बिहार और उत्तर प्रदेश सहित कुछ दूसरे सूबों के कई माननीय इन दिनों अपने जिन कुकृत्यों के कारण अदालत और जेल के चक्कर काट रहे हैं, वह भी पिछले कुछ दशकों में प्रकट हुई सार्वजनिक जीवन की सचाई का ही एक विद्रूप चेहरा है।
बहरहाल, बात एक बार फिर सुनंदा-शशि की। याददाश्त पर बहुत जोर देने की जरूरत नहीं है याद करने के लिए कि किन कारणों से थरूर को अपने मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। जाहिर है, कारण कई थे पर थे सब समगोत्रीय ही। उन तमाम कारणों की अकेली धुरी रहीं सुनंदा, जो आज पूर्व विदेश मंत्री की पत्नी हैं। प्रेम के लिए आत्मोत्सर्ग के इस श्याम-श्वेत को लेकर चाहे हम जितनी बातें कर लें पर इसकी नाटकीयता में आकर्षण और सौंदर्य भी कम नहीं, इसकी साक्षी तो अब देश की संसद भी है।
साभार : राष्ट्रीय सहारा (17 मार्च, 2011)
पूरबिया जहांपनाह,
जवाब देंहटाएंमुहब्बत तख्त-ओ-ताज की मोहताज नहीं होती...शशि थरूर का दिल आईपीएल की पिच नहीं जहां विरोधी बाउंसर फेंक सकें...
तन रंग लो जी आज मन रंग लो,
तन रंग लो,
खेलो,खेलो उमंग भरे रंग,
प्यार के ले लो...
खुशियों के रंगों से आपकी होली सराबोर रहे...
जय हिंद...