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बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

ओबामा का नोबेल गांधी प्रेम


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे की चर्चा अब भी खत्म नहीं हुई है, कम से कम सोशल मीडिया में तो नहीं ही। पर इस पूरी चर्चा में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस बहाने अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे को भी याद करने की जहमत उठा रहे हैं। मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए गांधी का गीता भाष्य ले गए थे। दिलचस्प है कि ओबामा भी अपने भारत दौरे के दौरान अपने गांधी प्रेम को भावनात्मक रूप से जाहिर करना नहीं भूले थे। यह अलग बात है कि तब मीडिया ने उनके इंडिया विजिट को इस लिहाज से ज्यादा देखा नहीं। खैर, यह तो रही बीती बात। पर इतना तो आज भी कह सकते हैं कि गांधी प्रेम जरूर एक ऐसा मुद्दा है, जिसने राष्ट्रपति चुनाव से लेकर विश्व शांति के अग्रदूत के रूप में नोबेल सम्मान से नवाजे गए इस बिरले राजनेता को न सिर्फ चर्चित बनाए रखा है बल्कि भारत के संदर्भ में उनकी चर्चा बिना इसके पूरी ही नहीं हो सकती।
अलबत्ता गांधीजनों से बात करें तो उनमें से ज्यादातर ओबामा के गांधी प्रेम को तो सराहते हैं पर वे इसे एक राष्ट्राध्यक्ष के हृदय परिवर्तन होने की कसौटी मानने को तैयार नहीं होते। दरअसल, जिन दो कारणों से ओबामा गांधी को नहीं भूलते या उन्हें याद रखना जरूरी मानते हैं, वे हैं गांधी की वह क्षमता जो साधारण को असाधारण के रूप में तब्दील करने व होने की प्रेरणा देता है और वह पाठ जो विश्व को शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए निर्णायक तौर पर जागरूक होने की जरूरत बताता है।
वर्ष 2००8 के शुरुआत में जब ओबामा अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए यहां-वहां चुनाव प्रचार कर रहे थे तो उन्होंने एक लेख में लिखा, '...मैंने महात्मा गांधी को हमेशा प्रेरणास्रोत के रूप में देखा है क्योंकि वह एक ऐसे बदलाव के प्रतीक हैं, जो बताता है कि जब आम लोग साथ मिल जाते हैं तो वे असाधारण काम कर सकते हैं।’ अपनी भारत यात्रा की शुरुआत में उन्होंने एक बार फिर गांधी को भारत का ही नहीं पूरी दुनिया का हीरो बताया।
दरअसल, 21वीं सदी में पूंजी के जोर पर विकास की जिस धुरी पर पूरी दुनिया घूमने को बाध्य है, उसमें भय और अशांति का संकट सबसे ज्यादा बढ़ा है। भोग और लालच की नई वैश्विक होड़ और मानवीय सहअस्त्वि का साझा बुनियादी रूप से असंभव है। इसलिए मौजूदा दौर में जिन लोगों को भी गांधी की सत्य, अहिसा और सादगी चमत्कृत करती है, उन्हें गांधी की उस 'ताबीज’ को भी नहीं भूलना चाहिए, जो व्यक्ति और समाज को हर दुविधा और चुनौती की स्थिति में 'अंतिम आदमी’ की याद दिलाता है। लिहाजा, ओबामा का गांधी प्रेम शांति और प्रेम की अभिलाषी दुनिया की संवेदना को स्पर्श करने की रणनीति भर नहीं है तो दुनिया के सबसे ताकतवर कहे जाने वाले इस राष्ट्राध्यक्ष को अपनी पहलों और संकल्पों में ज्यादा दृढ़ और बदलावकारी दिखना होगा। 9/11 के जख्म से आहत अमेरिका को अगर 26/11 का हमला भी गंभीर लगता है, पाकिस्तान को मिल रही उसकी शह एक भूल लगती है, आतंक रहित विश्व परिदृश्य की रचना उसकी प्राथमिकता में शुमार है तो उसका संकल्प हथियारों की खरीद-फरोख्त से ज्यादा मानवीय सौहार्द को बढ़ाने वाले अन्य मुद्दों पर होनी चाहिए। क्योंकि ओबामा और वह दुनिया जिसमें वह रहते हैं अपने रक्षार्थ जब भी खड़ी होगी तब गांधी की लाठी ही उनकी टेक बनेगी।

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