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सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

करवा की लीक और सिंदूरी सीख


करवा चौथ की पुरानी लीक आज विवाह संस्था की नई सीख है। खूबसूरत बात यह है कि इसे चहक के साथ सीखने और बरतने वालों में महज पति-पत्नी ही नहीं, एक-दूसरे को दोस्ती और प्यार के सुर्ख गुलाब भेंट करने वाले युवक-युवती भी हैं। कुछ साल पहले शादी के बाद बिहार से अमेरिका शिफ्ट होने वाले प्रत्यंचा और मयंक को खुशी इस बात की है कि वे इस बार करवा चौथ अपने देश में अपने परिवार के साथ मनाएंगे। तो वहीं नोएडा की प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक लड़की इस खुशी से भर रही है कि वह पहली बार करवा चौथ करेगी और वह भी अपने प्यारे दोस्त के लिए। दोनों ही मामलों में खास बात यह है कि व्रत करने वाले एक नहीं दोनों हैं, यानी ईश्वर से अपने साथी के लिए वरदान मांगने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। सबको अपने प्यार पर फL है और सभी उसकी लंबी उम्र के लिए ख्वाहिशमंद।
भारतीय समाज में दांपत्य संबंध के तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद उसे बनाए, टिकाए और निभाते चलने की वजहें ज्यादा कारगर हैं। यह बड़ी बात है और खासकर उस दौर में जब लिव-इन और समलैंगिक जैसे वैकल्पिक और खुले संबंधों की वकालत सड़क से अदालत तक गूंज रही है। अमेरिका और स्वीडन जैसे देशों में तलाक के मामले जहां 54-55 फीसद हैं, वहीं अपने देश में यह फीसद आज भी बमुश्किल 1.1 फीसद है। जाहिर है कि टिकाऊ और दीर्घायु दांपत्य के पीछे अकेली वजह परंपरा निर्वाह नहीं हो सकती। सचाई तो यह है कि नए दौर में पति-पत्नी का संबंध चर-अनुचर या स्वामी-दासी जैसा नहीं रह गया है। पूरे दिन करवा चौथ के नाम पर निर्जल उपवास के साथ पति की स्वस्थ और लंबी उम्र की कामना कुछ दशक पहले तक पत्नियां इसलिए भी करती थीं कि क्योंकि वह अपने पति के आगे खुद को हर तरीके से मोहताज मानती थी, लिहाजा अपने 'उनके’ लंबे साथ की कामना उनकी मजबूरी भी थी। आज ये मजबूरियां मेड फॉर इच अदर के रोमांटिक यथार्थ में बदल चुकी हैं।
परिवार के संयुक्त की जगह एकल संरचना एक-दूसरे के प्रति जुड़ाव को कई स्तरों पर सशक्त करते हैं। यह फिनोमिना गांवों-कस्बों से ज्यादा नगरों-महानगरों में ज्यादा इसलिए भी दिखता है कि यहां पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं, दोनों परिवार को चलाने के लिए घर से लेकर बाहर तक बराबर का योगदान करते हैं। इसलिए जब एक-दूसरे की फिक्र करने की बारी भी आती है तो उत्साह दोनों ओर से दिखता है। पत्नी की हथेली पर मेहंदी सजे, इसकी खुशी पति में भी दिखती है, पति की पसंद वाले ट्राउजर की खरीद के लिए पत्नी भी खुशी से साथ बाजार निकलती है।
करवा चौथ के दिन एक तरफ भाजपा नेता सुषमा स्वराज कांजीवरम या बनारसी साड़ी और सिदूरी लाली के बीच पारंपरिक गहनों से लदी-फदी जब व्रत की थाली सजाए टीवी पर दिखती हैं तो वहीं देश के सबसे ज्यादा चर्चित और गौरवशाली परिवार का दर्जा पाने वाले बच्चन परिवार में भी इस पर्व को लेकर उतना ही उत्साह दिखता है। साफ है कि नया परिवार संस्कार अपनी-अपनी तरह से परंपरा की गोद में दूध पी रहा है। यह गोद किसी जड़ परंपरा की नहीं समय के साथ बदलते नित्य नूतन होती परंपरा की है। भारतीय लोक परंपरा के पक्ष में यही तो अच्छी और सशक्त बात है कि इसमें समायोजन की प्रवृत्ति प्रबल है।

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