LATEST:


मंगलवार, 16 जुलाई 2013

पधारो म्हारे देस


राजस्थान की लोक परंपरा में 'पधारो म्हारे देस’ का अलाप इसलिए तो कम से कम नहीं ही गूंजा होगा कि लोग देस-दुनिया से यहां आएं और यहां की संस्कृति पर रीझें, मुस्कराएं और आगे निकल जाएं। हैरत ही है कि जो गीत राजस्थानी परिवार-समाज की सदियों से चली आ रही आतिथ्यि उदारता को शब्द दे रहे थे, वे आज सैलानियों को यहां लाने-जुटाने के लिए हांक भर हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें