पक रही हैं लड़कियां
मोहल्ले की लड़कियां
फरवरी के महीने में
बरामदे की कुर्सियों पर
छत पर बिछी चटाई पर
खुले लॉन में
ऊन के फंदों में
कस रही हैं लड़कियां
बैडमिंटन के कोर्ट में
शटल के पंखों से
उड़ रही हैं लड़कियां
लड़कों का क्रिकेट बॉल
उड़ा ला रहे हैं
लड़कियों की बातें
नयी पकी खुशबू की सौगातें
नहीं कर पा रहे हैं यही काम
ऊपर उड़ रहे कई पतंग
प्रयास के बावजूद
सबको पता है कि
शाम से पहले
तीन-साढ़े तीन बजे
इस वासंती मुहूर्त का नायक
यहां नहीं है
वहां लड़कियों की बातों से भी
उसकी टोह मुश्किल है
बची कविता
तो वह भला
यहां कैसे हो सकता है
वैसे यह कहना भी फिजूल है
यह जानने के बाद कि वह
धड़कनों का चित्रकार है
और इस साल वसंत के पास
उसी की कूची से धुला
आईडेंटीटी कार्ड है
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