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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

खाली सफा


खाली सफा था
कुछ भी लिखता
नाम अपना
बनाता पहाड़
डूबता सूरज
बहती नदी
लाली सांझ की
घोसलों से आती
चुनमुन-चुनमुन
चिड़ियों की आवाज
या खेलता खेल
कट्टमकुट्टी का
फिर एक बार
अपने ही खिलाफ
बहुत साल बाद

खाली सफा था
कुछ भी लिखता
कुछ भी करता
बना लेता नाव
उड़ाता जहाज
दौड़ पड़ता लेकर घिरनी
सामने से आती
हर हवा के खिलाफ
पर नहीं
मन की तिल्ली तो
बनना चाहती थी आग
रगड़ के बाद
चौंध के साथ उड़ता
सबसे तेज धुंआ
पसीने से तर-बतर
सबसे गरम आवाज

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