- प्रेम प्रकाश
कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में राहुल जहां भाजपा को भय
और तोड़ने वाली पार्टी बता रहे हैं तो वहीं खडगे कांग्रेस को संघ-भाजपा से सीखने के
लिए कह रहे हैं
यूपी की दो सीटों पर उपचुनाव में भाजपा की हार
से देश में राजनीतिक पारा भले चढ़ा दिखता हो, पर इस गरमाहट से भारतीय राजनीति का
चरित्र का बहुत बदलने जा रहा है, एेसा कम से कम फिलहाल तो नहीं दिख रहा। यूपी में अगला
उपचुनाव कैराना सीट पर होगा। खबर है कि उपचुनावों से भागने वाली इस बार बसपा वहां
भाजपा से भिड़ने के मूड है। फूलपुर और गोरखपुर के नतीजे अगर कैराना में भी दोहरा
दिए जाते हैं तो भी यह सवाल अपनी जगह कायम रहेगा कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष की
गोलबंदी का बड़ा आधार क्या होगा और इसकी अगुवाई क्या कांग्रेस करने में सफल होगी।
दिल्ली में अभी 2019 के चुनावी समर की तैयारी
के लिए कांग्रेस का तीन दिवसीय सम्मेलन चल रहा है। राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के
बाद यह कांग्रेस का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन है। हाल में जो भी चुनाव-उपचुनाव हुए
हैं, उसमें कांग्रेस को शिकस्त ही खानी पड़ी है। आगे अगर कर्नाटक भी उसके हाथ से
निकला तो बड़े सूबे के तौर पर उसके पास बस पंजाब रह जाएगा। इसलिए यूपी-बिहार की
सोशल इंजीनियरिंग से बसपा-सपा औ राजद भले अपनी प्रांतीय पकड़ सुधार लें, इससे आगे
वे विपक्ष के किसी राष्ट्रीय गठजोड़ की उम्मीद नहीं जगाते हैं। रही कांग्रेस की
बात तो वह इस उम्मीद में भले है कि 2019 के पहले उसकी छतरी के नीचे सारा विपक्ष आ
जाएगा। पर इसके लिए उसकी जो तैयारी और समझ है, वह एक फिर निराशा पैदा करती है।
पार्टी के अधिवेशन में लोकसभा में विपक्ष के
नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की है कि भाजपा और संघ
कार्यकर्ताओं की तरह वे भी कर्नाटक में घर-घर जाएं। जबकि इससे पहले कांग्रेस
अध्यक्ष ने कहा कि वे नफरत और डर फैलाने वाली नहीं बल्कि प्रेम और भरोसा जगाने
वाली पार्टी हैं। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा की राजनीतिक संस्कृति में बुनियादी
अंतर बताया। सवाल यह है कि एक ही पार्टी के भीतर नेताओं के बीच जब यह साफ नहीं है
कि वे चुनावी मैदान में उतरने से पहले किन बातों पर जोर देंगे और चुनावों में जीत
के लिए उनकी बुनियादी रणनीति क्या होगी, वह पार्टी अगर देश के आगे राजनीतिक बदलाव
और सत्ता परिवर्तन की उम्मीद जगाती है, तो यह भी साफ दिख रहा है कि इस उम्मीद के
खिलाफ विरोधाभास खुद उनके अपने भीतर है।
एक तरफ तो अधिवेशन के उद्घाटन भाषण में
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यह कह गए कि आज देश में गुस्सा फैलाया जा रहा है, देश को बांटा जा रहा है। हिंदुस्तान के
एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से लड़वाया जा रहा है। हमारा काम जोड़ने का है।
कांग्रेस का हाथ निशान ही देश को जोड़ कर रख सकता है। दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के
दूसरे नेता यह कह रहे हैं कि चुनावी जीत के लिए उन्हें भाजपा-संघ का मॉड्यूल
अपनाना चाहिए। साफ है कि कांग्रेस अगर अपने इतिहास के सबसे बुरे दिन में है तो
यहां से उबरने का रास्ता उसे अभी तक नहीं सूझ रहा है।
जुमलों और भाषणों के भरोसे न तो राजनीति बदलाव
संभव है और न ही सत्ता के शिखर तक पहुंचा जा सकता है। आज की तारीख में यह बात अगर
देश में किसी राजनीतिक दल को सबसे ज्यादा समझने की जरूरत है तो वह देश की सबसे
पुरानी पार्टी कांग्रेस है।
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