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शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

सर

(शिक्षक दिवस पर विशेष कविता)


रोकिए नहीं सर
अभी लिखना है
और भी बहुत कुछ
इजाजत नहीं तो वहां
क्लास के बाहर
बैठकर लिख लूंगा
आपकी छड़ी
टिक-टिक घड़ी
दोनों की कद्रदानी
सौभाग्य है मेरा


सौभाग्य यह आज भी
दुविधाग्रस्त नहीं
सुरक्षित है सर
बहुत सिखाया है इसने
बहुत असर है इनका
मेरे ऊपर


लेकिन लिखूंगा
आज तो जरूर लिखूंगा सर
ऐसे कई शब्द
अधूरे-पूरे वाक्य
जिनके हिज्जे
पूरा का पूरा गठन
दुरुस्त नहीं
बस होंगे मौलिक



ये भी बड़ी बात है सर
बताया था आपने ही
पढ़ाते हुए कबीर
इन्हें बस मैं ही लिख सकता हूं
सिर्फ मेरी स्याही ही
उगा सकती हैं इन्हें
ये मेरे शब्द हैं सर
सिर्फ मेरी कॉपी पर ही
हो सकते हैं


इनके होने की दरकार
एक अधूरे आदमी की
पूरे व्यक्तित्व की चाहना है
बहुत जरूरी है
इनका चहकना


बहुत जरूरी है सर
मेरी कॉपी को
मेरा साबित होना
भरोसा है
यह मौका आप देंगे
मेरी कॉपी आप
नहीं लेंगे सर



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