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मंगलवार, 19 अगस्त 2014

अदम की शायरी का दम


अभी मैनेजर पांडे की कई किताबें आई हैं। उन्हीं में एक में अदम गोंडवी पर उनका लेख है। याद हो आया कि अखबार के दफ्तर में काम के दौरान ही अदम के देहांत की खबर मिली थी। अखबार के ही एक साथी ने दौड़कर आकर बताया था। इसे हिदी पत्रकारिता के दिलो-दिमाग में उतरा देशज संस्कार कहें या जमीनी सरोकार कि तमाम अखबारों ने अगले दिन अदम के देहांत की खबर को स्थान देना जरूरी समझा।
अदम जनता के शायर थे और अपनी शख्सियत में भी वे आमजन की तरह ही सरल और साधारण थे। पुराने गढ़न की ठेहुने तक की मटमैली छह-छत्तीस धोती, मोटी बिनाई का कुर्ता और गले में सफेद गमछा लपेटे अदम को जिन लोगों ने कभी मुशायरों-कवि सम्मेलनों में सुना होगा, उन्हें इस निपट गंवई शायर के मुखालफती तेवर के ताव और घाव आज ज्यादा महसूस हो रहे होंगे।
हिदी की कुलीन बिरादरी इस भाषा को किताबों और सभाकक्षों में चाहे जो स्वरूप देकर अपना सारस्वत धर्म निबाहे, इसकी आत्मा तो हमेशा लोक और परंपरा के मेल में ही बसती है। यही कारण है कि अपने समय की सबसे चर्चित और स्मृतियों का हिस्सा बनी काव्य पंक्तियों के रचयिता इस जनकवि को अदबी जमात ने अपने हिस्से के तौर पर मन से कभी नहीं कबूला।
अदम काफी हद तक कबीराई मन-मिजाज के शायर थे। इसलिए उन्हें इस बात का कभी अफसोस रहा भी नहीं कि उन्हें उनके समकालीन साहित्यकार और आलोचक किस खांचे में रखते हैं। कवि सम्मेलनों और मुशायरों का हल्का और बाजारू चरित्र उन्हें खलता तो बहुत था पर वे इन मंचों को जनता तक पहुंचने का जरिया मानकर स्वीकार करते रहे।
अपने करीब 63 साल के जीवन में उन्होंने हिदुस्तान की उम्मीद और तकदीर का वह हश्र सबसे ज्यादा महसूस किया जिसने आमजन के भरोसे और उम्मीद को कुम्हलाकर
रख दिया।
सत्ता, सियासत और दौलत के गठबंधन ने गांव और गरीब को जैसे और जितनी तरह से ठगा, उसका जीवंत चित्र अदम की शायरी का सबसे बड़ा सरमाया है। अपने समय में सत्ता के खिलाफ वे सबसे हिमाकती और मुखालफती आवाज थे।
'काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में/ उतरा है रामराज्य विधायक निवास में’, 'इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया/ सेक्स की रंगीनियां या गोलियां सल्फास की’, 'जो न डलहौजी कर पाया वो ये हुक्मरान कर देंगे/ कमीशन दो तो हिदुस्तान को नीलाम कर देंगे’....जैसे नारे और बगावती बयाननुमा पंक्तियों को लोगों की जुबान पर छोड़ जाने वाले अदम गोंडवी के बाद जनभावनाओं को निर्भीक अभिव्यक्ति
देने वाली जनवादी काव्य परंपरा की निडरता शायद ही कहीं नजर आए।
जहां तक कथन के साथ काव्य शिल्प का सवाल है तो हिदी में दुष्यंत कुमार के बाद अदम गोंडवी अकेले ऐसे शायर हैं, जिन्होंने न सिर्फ हिदी शायरी की जमीन का रकबा बढ़ाया बल्कि उसे मान्यता और लोकप्रियता भी दिलाई। हिदी के काव्य हस्ताक्षरों की कबीराई परंपरा में अदम नागार्जुन और त्रिलोचन की परंपरा के कवि थे।

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