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मंगलवार, 26 नवंबर 2013

कीर्ति का विज्ञान

देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले प्रो. सीएनआर राव चौथे वैज्ञानिक हैं। पर इस सम्मान की घोषणा के बाद उनके कुछ तल्ख बयानों की चर्चा ज्यादा हुई, उनके काम और उपलब्धियों की ओर लोगों का ध्यान कम गया। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि प्रो. राव और सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने की घोषणा एक साथ हुई। क्रिकेट और उसके कथित 'भगवान’ के पीछे पागल देश में यह सोचने की फुर्सत किसे थी कि देश एक महान खिलाड़ी के साथ एक महान वैज्ञानिक वैज्ञानिक को भी सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने जा रहा है। आंकड़ों में सचिन की महानता को देखने-परखने वालों को अगर यह बताया जाए कि प्रो. राव के नाम 15०० से ज्यादा रिसर्च पेपर हैं, कम से कम 45 किताबें लिए चुके हैं वे, 6० से ज्यादा विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी है, तो वे भी रोमांचित हुए बिना शायद ही रहें। प्रो. राव के खाते में यश और कीर्ति इतना भर ही नहीं है। 79 साल के इस विलक्षण प्रतिभा के धनी को देश के कई प्रधानमंत्रियों का वैज्ञानिक सलाहकार बनने का सौभाग्य हासिल है। उनसे पहले तीन ही वैज्ञानिक ऐसे हैं, जिन्हें भारत रत्न मिला है। सबसे बड़ी बात तो यह कि वे देश के अकेले ऐसे वैज्ञानिक हैं जिनका एच-इंडेक्स 1०० है।
प्रो. राव का जन्म 3० जून 1934 को बेंगलुरू में हुआ। वे खुद बताते हैं कि उन्हें बचपन में घर में धार्मिक प्रेरणाएं काफी मिलीं। उनकी मां नागम्मा नागेसा राव काफी पूजा-पाठ करती थी और उन्हें देवी-देवताओं की कहानियां सुनाती थीं। राव अपनी मां से ज्यादा करीब थे इसलिए शुरुआत में उनका झुकाव आध्यात्म की ओर बढ़ने लगा। पर घर में एक विपरीत स्थिति भी थी। पिता हनुमंथ नागेसा राव को यह सब बहुत पसंद नहीं था। वे चाहते थे कि उनका बेटा खूब पढ़े-लिखे और अंग्रेजी में बात करे। नतीजतन प्रो. राव में बचपन में ही एक तरफ तो कुछ उच्च संस्कार आए, वहीं दूसरी तरफ पढ़ाई-लिखाई की तरफ भी वे गंभीरता से मुखातिब हुए। इन बातों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि देश तब गुलामी के अंधेरे से निकलने के लिए निर्णायक संघर्ष कर रहा था।
प्रो. राव ने 1951 में मैसूर विश्वविद्यालय से बीएससी की। बाद में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आ गए और यहां से उन्होंने एमएससी की पढ़ी पूरी की। उच्च शिक्षा के इस मुकाम तक आते-आते उनके ज्ञान और प्रतिभा का डंका हर तरफ बजने लगा था। एमआईटी, कोलंबिया और पड्र्यू यूनिवर्सिटी ने उन्ह्ें अपने यहां से पीएचडी करने का ऑफर भेजा, वह भी सौ फीसद छात्रवृत्ति की पेशकश के साथ। प्रो. राव ने पड्र्यू को चुना और वहां उन्होंने नौ महीने के रिकार्ड समय में पीएचडी का अपना शोध पूरा किया और वह भी विशेष सराहना टिप्पणी के साथ। इस समय तक आते-आते वे अपने करियर के उस निर्णायक दौर में पहुंच गए थे, जहां उन्हें यह तय करना था कि वे स्वदेश लौटें कि नहीं।
1959 में वे स्वदेश लौट आए कई स्वर्णिम प्रस्तावों को ठुकराकर। यहां उन्होंने बेंगलुरू में 5०० रुपए मासिक पर इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस से लेक्चरर के तौर पर नौकरी शुरू की। भारत लोटकर उन्होंने देश की वैज्ञानिक उन्नति को एक तरफ से अपने जीवन का एकमेव शपथ बना लिया। आज नैनो मैटेरियल, सॉलिè स्टेट और मैटेरियल कैमेस्ट्री के क्षेत्र में अपने अध्ययन और शोधों के कारण विज्ञान जगत में उनका खासा नाम-सम्मान है। फिलहाल वे जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च के मानद अध्यक्ष और इंटरनेशनल सेंटर फॉर मैटेरियल साइंस के निदेशक हैं। वे आईआईटी से भी जुड़े हैं।
एक वैक्षानिक के रूप में प्रो. राव का सफरनामा 2०11 में अचानक विवादों में घिर गया था, जब उन पर रिसर्च चौरी का आरोप लगा। तब उन्होंने विनम्रता से माफी भी मांग ली थी पर बाद में पता चला कि यह गलती उनके कनिष्ठ प्रोफेसर और एक छात्र की असावधानी के कारण हुई थी। बहरहाल देश को अपने इस रत्न पर गर्व है। सचिन तेंदुलकर के शब्दों में उन्होंने जो कुछ भी किया पर प्रो. राव साधना एकांतिक है। इस वैज्ञानिक साधक को पूरे देश की तरफ प्रणाम।

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