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शनिवार, 3 जुलाई 2010

सुनंदा, आपसे कुछ कहने का मन है


मैडम सुनंदा,
विनम्र अभिवादन।
पत्र जरूर लिख रहा हूं लेकिन इस एतबार के साथ नहीं कि आप मुझे जानती ही होंगी। हां, यह जरूर है कि पिछले कुछ महीनों में देश के उन कराड़ों लोगों के साथ मेरा नाम भी जरूर जुड़ गया, जिनकी सूचना और दिलचस्पी के जाने-अनजाने कई तार आपसे जुड़ गए हैं। तभी तो पिछले दिनों जब आपका इंटरव्यू एक वेबसाइट पर देखा तो बिना पूरा पढ़े उसे छोड़ नहीं पाया। इस इंटरव्यू में आपसे पूछे गए ज्यादातर सवाल और आपके जवाब ऐसे ही थे, जिसने मीडिया को पिछले दिनों न सिर्फ एक के बाद सुर्खियां दीं, बल्कि एक ही सब्जेक्ट पर कई ब्रोकिंग न्यूज का रिकार्ड भी तोड़ा। पर जहां मैं अटका और अलग से आपकी दुनिया और सोच के बारे में सोचने को मजबूर हुआ, वह था आपका एक स्टेटमेंट, जो आपने अपने इंटरव्यू में दिया है। संभव है जिन वजहों से पिछले दिनों मीडिया में आपकी चर्चा हुई और जिस तरह से आपको पेश किया गया, यह उसके खिलाफ आपकी खीज भी हो।
आपने कहा है, "कहा गया कि मेरी शादी दिल्ली के एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर से हुई थी, मेरे दूसरे पति ने आत्महत्या की थी और मैं कई लोगों के साथ सो चुकी हूं। मुझे बिल्कुल वेश्या बना दिया गया। और इनका सबसे बुरा हिस्सा यह था कि यह मेरे महिला होने की वजह से नहीं बल्कि आकर्षक और सुंदर महिला होने की वजह से किया जा रहा था। हमारे समाज में कई ऐसे लोग हैं जिनके लिए महिला के खूबसूरत होने का मतलब है कि वह बाजारू औरत होगी।'
मुझे आपके जवाब से कोई एतराज नहीं। आप पर जो बीती और उसको लेकर जैसा आपने सोचा, वैसा कहा। ऐसी किसी प्रतिक्रिया के लिए लोकतांत्रिक समाज में पर्याप्त स्पेस है और होना भी चाहिए। मुझे आपके जवाब से ज्यादा उससे उठने वाले सवाल मथ रहे हैं। जब मैं आपके जवाब और उससे पैदा होने वाले सवालों का सामना एक साथ कर रहा हूं तोे जेहन में हिंदी के एक बड़े संपादक साहित्यकार की टिप्पणी और एक महत्वपूर्ण कवि की पंक्तियां उभर रही हैं।
संपादक महोदय ने तो अपने संपादकीय में सीधे-सीछे यह लिखकर तूफान बरपा दिया था कि हर सुंदर स्त्री चाहती है कि उसका बलात्कार कम से कम एक बार जरूर हो। यह अलग बात है कि न तो उनसे किसी ने पूछा और न उन्होंने बताया कि यह "बलात्कार' सौंदर्यपान की कोई आक्रामक अवहट्टी परंपरा का नाम है या किसी महिला के खिलाफ सीधे-सीधे सेक्सुअल अटैक को क्लीन चिट। कवि महोदय की पंक्तियों के जिक्र से पहले बस इतना बता दूं कि यह बात तब की है जब एक भारतीय सुंदरी इंगलैंड सरकार के कई मंत्रियों के बेडरूम तक दाखिल हो गई थी। "पामेला बोर्डसे मैं तुमसे बेपनाह मुहब्बत करता हूं', यह लिखकर कवि ने जताया कि दुनिया की क्रूर विस्तारवादी ताकतों का नाड़ा खोलना भी कम क्रांतिकारी कामयाबी नहीं है।
बहरहाल सुनंदा, अब जिक्र आपके दहकते स्टेटमेंट की। मीडिया ने जिस तरह आपको एक महिला होने के कारण आपसे जुड़े प्रसंगों में चटखारेदार दिलचस्पी दिखाई, इसकी कुछ हलकों में कड़ी आलोचना भी हुई है। और इस एक मुद्दे पर मीडिया के रोल को कंडेम भी किया जा सकता है। आज इस मुद्दे पर देश में तकरीबन सहमति है कि महिलाओं की छवि बिगाड़ने में सबसे संगीन हाथ मीडिया का रहा है। आलम यह है कि मुंबई और मद्रास में बनने वाली बी और सी ग्रेड की फिल्मों से लेकर देसी पॉन बाजार भी इस मामले में मीडिया से पीछे है।
यहां बात हम सिर्फ छवियों की नहीं कर रहे, बल्कि उस पूरे कांटेट की कर रहे हं, ै जो 24 घंटे हमारे टीवी स्क्रीन पर नाचता है। पर समय और समाज की नजर में आपने जो खूबसूरती की परिभाषा दी है, वह भी कम दिलचस्प नहीं है। समझ में नहीं आता कि आप बाजार के कारण बढ़े बाजारूपन के खिलाफ हैं या सिर्फ बाजारू सस्तापन आपको अखरता है। आपने जैसा अपने बारे में बताया, उससे यह तो लगता है कि आप खासी जागरूक महिला भी हैं। जिस आईपीएल के बहाने आपको लेकर तरह-तरह की बातें की गईं, उसने भी महिलाओं के "बाजारू' और "चीयरफूल' इस्तेमाल को ही बढ़ावा दिया है। एक महिला जो अपने खिलाफ सतही प्रतिक्रिया से तिलमिला रही है, उससे यह उम्मीद भी की ही जा सकती है कि वह उस पूरी महिला जाति के रूप में भी सोचे कि कैसे उसके बारे में बात करते हुए आंखों में नाखून उगने लगते हैं और कैसे उसकी छवि को आकर्षक और सुंदर कहने के बहाने उसके देह पर अंगुलयिां तैराने की प्रवृत्ति जागती है।
वैसे मैडम इन दिनों आपकी नई शादी की चर्चा भी है। इंगेज्मेंट फंक्शन को लेकर तो छान-छानकर खबरें छापी-बांची जा रही हैं। सो अपन भी इस बारे में अपनी थोड़ी मालोमात बढ़ा पाए हैं। अगर ये सारी खबरें सच्ची हैं तो आपको मेरी ओर से सिंदूरी शुभकामनाएं। विवाह संस्था के प्रति आपकी बारंबार प्रकट हुई श्रद्धा आपकी एक भारतीय नारी की छवि को पूरी करती है। शायद आपको भी बाजार के दौर की नहीं बल्कि पांच हजार साल से दूध पिलाती परंपरा और देश-समाज की बेटी होने में फख्र महसूस हो।
आपका ही
एक शुभचिंतक

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